विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति
(Dual nature of Matter and Radiation notes in Hindi)
प्रकाश विद्युत प्रभाव, कॉम्पटन प्रभाव और रमन प्रभाव आदि विकिरण की पदार्थ के साथ अन्योन्य क्रियाएं हैं, जिनकी प्रकाश के क्वांटम सिद्धांत (कण प्रकृति) द्वारा व्याख्या की जा सकती है, जबकि प्रकाश के कुछ अन्य प्रभाव जैसे परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन और ध्रुवण को तरंग प्रकृति द्वारा समझाया जा सकता है। इसे प्रकाश की द्वैत प्रकृति कहते हैं।
सममितता के आधार पर डी-ब्रोगली ने गतिमान पदार्थ कणों के साथ तरंगों के जुड़ाव की परिकल्पना की, जिसे बाद में डेविसन और जर्मर (डेविसन-जर्मर प्रयोग) द्वारा प्रयोगात्मक रूप से सत्यापित किया गया।
इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन
(Dual nature of Matter and Radiation notes in Hindi)
धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं जो अपने परमाणु के बंधन से तो मुक्त होते हैं लेकिन धातु प्रष्ठ की सीमा में बंधे होते हैं और सामान्यतया धातु की सतह से बाहर नहीं आते हैं क्योंकि आयनों का आकर्षण उन्हें धातु के अंदर बांधे रखता है। इन इलेक्ट्रॉनों को धातु की सतह से बाहर निकालने के लिए कुछ ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
कार्य फलन(Φ0) :- धातु की सतह से एक इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा की न्यूनतम मात्रा को कार्य फलन कहा जाता है। इसे आमतौर पर Φ0 द्वारा दर्शाया जाता है। एक धातु का कार्य फलन निश्चित होता है, जबकि विभिन्न धातुओं के लिए यह भिन्न होता है।
एक धातु की सतह से एक इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा (कार्य फलन ) को नीचे दिए गए तरीकों में से किसी एक द्वारा मुक्त इलेक्ट्रॉनों को आपूर्ति की जा सकती है :-
- तापीय उत्सर्जन (Thermionic Emission) :- मुक्त इलेक्ट्रॉनों को उपयुक्त रूप से गर्म करके आवश्यक तापीय ऊर्जा प्रदान की जाती है ताकि वे धातु से बाहर आ सकें।
- क्षेत्र उत्सर्जन (Field Emission) :- धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए इलेक्ट्रॉनों को विद्युत क्षेत्र के प्रबल प्रभाव में रखा जाता है।
- प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन (Photo-electric Emission):- जब किसी धातु के पृष्ठ पर उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश आपतित होता है, तो इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है। इन फोटो-जनित इलेक्ट्रॉनों को फोटोइलेक्ट्रॉन कहा जाता है।
- द्वितीयक उत्सर्जन (Secondary Emission) :- जब उच्च-ऊर्जा इलेक्ट्रॉन (प्राथमिक इलेक्ट्रॉन) धातु की सतह से टकराते हैं, तो वे अपनी ऊर्जा धातु के मुक्त इलेक्ट्रॉनों में स्थानांतरित कर देते हैं, जिससे धातु के मुक्त इलेक्ट्रॉन सतह से उत्सर्जित हो जाते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों को द्वितीयक इलेक्ट्रॉन कहा जाता है और इस घटना को द्वितीयक उत्सर्जन कहा जाता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव
(Dual nature of Matter and Radiation notes in Hindi)
(a) हर्ट्ज के परीक्षण
1887 में विद्युत चुम्बकीय तरंगों को उत्पन्न करने और उनके संसूचन पर हर्ट्ज के प्रयोगों ने प्रकाश की तरंग प्रकृति को दृढ़ता से स्थापित किया। स्फुर्लिंग-विसर्जन (स्पार्किंग डिस्चार्ज) द्वारा विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न करने के अपने प्रयोग में, हर्ट्ज ने देखा कि यदि कैथोड पर पराबैंगनी प्रकाश आपतित करवाया जाता है तो स्फुर्लिंग अधिक तेज हो जाता है। हर्ट्ज इस घटना की व्याख्या नहीं कर सके।
[हर्ट्ज प्रयोग में समान आकार की दो धातु की प्लेटें होती हैं, जिन्हें लगभग 60 सेमी दूरी पर एक दूसरे के समानांतर रखा जाता है। दो छोटे धातु के गोलों S1 और S2 को क्रमशः प्लेट A और B से मोटी धातु की छड़ों से जोड़ा जाता है व एक दूसरे के समीप रखा जाता है। एक इंडक्शन कॉइल का उपयोग करके गोलों को उच्च विभव पर चार्ज किया जाता है।
धातु की प्लेटों के मध्य उच्च विभवान्तर, गोलों के बीच की वायु को आयनित करता है और प्लेटों के मध्य निर्वहन के लिए एक मार्ग की अनुमति देता है। डिस्चार्ज के दौरान, एक चिंगारी उत्पन्न होती है। इस व्यवस्था की अनुनाद आवृत्ति द्वारा दी जाती है।
इस प्रकार गोलों के बीच अत्यधिक दोलनशील विद्युत क्षेत्र उत्पन्न होता है जो गोलों के बीच की दूरी के लम्बवत एक क्षैतिज तल में समान आवृत्ति के दोलनशील चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है। यह दोलन विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र विद्युत चुम्बकीय तरंगें बनाते हैं।
]
(b) हालवॉक्स और लेनार्ड के प्रेक्षण
हालवॉक्स और लेनार्ड ने 1886 से 1902 के दौरान प्रकाश विद्युत प्रभाव का विस्तार से अध्ययन किया।
हालवॉक्स के प्रेक्षण :-
हालवॉक्स ने एक ऋणात्मक आवेश वाली जिंक प्लेट को विद्युतदर्शी से जोड़ा और प्लेट पर पराबैंगनी प्रकाश डाला तो उन्होंने पाया कि प्लेट उदासीन हो गई है। जब इस उदासीन प्लेट पर पराबैंगनी प्रकाश डाला, तो पाया गया कि प्लेट धनावेशित हो जाती है और धनावेशित प्लेट पर पुनः पराबैंगनी प्रकाश डालने पर इस पर धनात्मक आवेश की मात्रा बढ़ जाती है। उपरोक्त अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जब धातु की सतह पर पराबैंगनी प्रकाश आपतित होता है तो धातु की सतह से ऋणात्मक रूप से आवेशित कण उत्सर्जित होते हैं।
1897 में इलेक्ट्रॉन की खोज से यह निश्चित हो गया कि प्रकाश के कारण उत्सर्जित होने वाले ये ऋणावेशित कण इलेक्ट्रॉन हैं।
लेनार्ड के प्रेक्षण :-
लेनार्ड ने देखा कि यदि एक निर्वातित ट्यूब में लगी दो धातु प्लेटों के मध्य विभवान्तर आरोपित किया जाता है तो परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है। किन्तु जब एक प्लेट (उत्सर्जक प्लेट), जिसे ऋणात्मक विभव पर रखा जाता है, पराबैंगनी विकिरणों के संपर्क में आती है, तो विदुत धारा प्रवाहित होने लगती है। जैसे ही उत्सर्जक प्लेट पर पड़ने वाली पराबैंगनी विकिरणों को रोका जाता है, धारा प्रवाह भी रुक जाता है। इन प्रेक्षणों से संकेत मिलता है कि जब किसी धातु की प्लेट पर पराबैंगनी किरणें पड़ती हैं, तो उसमें से इलेक्ट्रॉन बाहर निकल जाते हैं जो धनात्मक विभव पर रखी दूसरी धातु की प्लेट (संग्राहक प्लेट) की ओर आकर्षित होते हैं।
निर्वातित ग्लास ट्यूब में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के परिणामस्वरूप बाहरी परिपथ में धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार, उत्सर्जक प्लेट की सतह पर पड़ने वाला प्रकाश बाह्य परिपथ में धारा का कारण बनता है। हालवॉक्स और लेनार्ड ने संग्राहक प्लेट विभव के साथ और आपतित प्रकाश की आवृत्ति और तीव्रता के साथ प्रकाश-विद्युत धारा के परिवर्तन का अध्ययन किया।
प्रकाश-विद्युत प्रभाव की परिभाषा “जब धातु की सतह पर एक उपयुक्त आवृत्ति (या इस आवृत्ति से अधिक) का प्रकाश आपतित होता है, तो धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है। इस घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहा जाता है।”
कुछ संबंधित पद :-
- कार्य फलन :- किसी धातु की सतह से एक इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा की न्यूनतम मात्रा।
- देहली आवृत्ति :- प्रकाश की न्यूनतम आवृत्ति जो एक इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक है।
- देहली तरंग दैर्ध्य :- प्रकाश की अधिकतम तरंग दैर्ध्य जो एक धातु की सतह से एक फोटोइलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव का प्रायोगिक अध्ययन
नीचे दिए गए परिपथ का प्रयोग प्रकाश-विद्युत प्रभाव का अध्ययन करने के लिए किया जाता है :-
उपरोक्त उपकरण में एक निर्वात नलिका (क्वार्ट्ज या कांच की) होती है जिसमें प्रकाश सुग्राही कैथोड C (उत्सर्जक प्लेट) और एनोड A (संग्राहक प्लेट) प्लेटें लगी होती हैं। कैथोड व एनोड के मध्य वांछित विभवांतर उत्पन्न करने के लिए एक विभव विभाजक लगा होता है। वोल्टमीटर, कैथोड व एनोड के मध्य विभवांतर को मापता है और माइक्रो एमीटर (μA) परिपथ में अल्प प्रकाश विद्युत धारा को मापता है। एनोड व कैथोड के मध्य एक दिक्परिवर्तक जुड़ा होता है जिससे कैथोड C तथा एनोड A के मध्य इच्छा अनुसार धन तथा ऋण या ऋण तथा धन विभव उत्पन्न किया जा सके।
क्रियाविधि :-
जब उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश कैथोड (C) पर पड़ता है, तो उसमें से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं। ये उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन आरोपित विभवान्तर के कारण एनोड की ओर त्वरित होते हैं और प्रकाश विद्युत धारा उत्पन्न करते हैं। इस धारा को माइक्रो एमीटर द्वारा मापा जाता है।
निम्न घटकों के अंतर्गत प्रकाश विद्युत धारा का अध्ययन किया जा सकता है :-
- आपतित प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन।
- कैथोड और एनोड के मध्य आरोपित विभवान्तर में परिवर्तन और
- आपतित प्रकाश की आवृत्ति में परिवर्तन।
(1) आपतित प्रकाश की तीव्रता का प्रकाश विद्युत धारा पर प्रभाव
आपतित प्रकाश की तीव्रता पर प्रकाश-विद्युत धारा की निर्भरता का अध्ययन करने के लिए, हम आपतित प्रकाश की आवृत्ति व कैथोड और एनोड के मध्य विभवांतर को स्थिर रखते हैं और आपतित प्रकाश की तीव्रता को परिवर्तित करते हैं।
प्रकाश की तीव्रता और प्रकाश-विद्युत धारा के बीच निम्न आलेख प्राप्त होता है :-
प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि के साथ कैथोड पर प्रति सेकंड गिरने वाले फोटोन की संख्या बढ़ जाती है। जो उपरोक्त आलेख से स्पष्ट है कि प्रकाश विद्युत धारा अर्थात प्रति सेकंड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की संख्या आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है ।
अतः प्रकाश-विद्युत धारा आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।
(2) कैथोड और एनोड के मध्य आरोपित विभवान्तर का प्रकाश विद्युत धारा पर प्रभाव
कैथोड और एनोड के मध्य आरोपित विभवान्तर पर प्रकाश विद्युत धारा के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, हम आपतित प्रकाश की आवृत्ति और तीव्रता को स्थिर रखते हैं।
विभवान्तर और प्रकाश विद्युत धारा के मध्य निम्न आलेख प्राप्त होता है : –
उपरोक्त आलेख से हम देखते हैं कि जब कैथोड और एनोड के मध्य विभवान्तर शून्य होता है, तो परिपथ में कुछ मात्रा में प्रकाश विद्युत धारा प्रवाहित होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अपनी गतिज ऊर्जा होती है। अब यदि हम विभवान्तर को बढ़ा दें तो प्रकाश-विद्युत धारा भी बढ़ जाती है और कुछ समय पश्चात यह संतृप्त हो जाती है। धारा संतृप्त इसलिए हो जाती है क्योंकि कैथोड द्वारा उत्सर्जित सभी इलेक्ट्रॉन एनोड तक पहुंच जाते हैं।
अब यदि हम दिक्परिवर्तक का उपयोग करके विभवान्तर की दिशा को उलट देते हैं और जब यह ऋणात्मक विभवान्तर बढाया जाता है, तो धारा का मान कम हो जाता है और एक निश्चित ऋणात्मक विभवान्तर पर यह शून्य हो जाती है। ऋणात्मक विभवान्तर के इस मान को निरोधी विभव (V0) (स्टॉपिंग पोटेंशिअल) कहते हैं।
निरोधी विभव (V0) कैथोड के सापेक्ष एनोड पर आरोपित ऋणात्मक विभव होता है जिस पर प्रकाश-विद्युत धारा का मान शून्य हो जाता है।
नोट :-
- उपरोक्त आलेख से हम देखते हैं कि आपतित प्रकाश की दो अलग-अलग तीव्रताओं (I1 और I2) के लिए, निरोधी विभव (V0) समान है। अत: हम कह सकते हैं कि निरोधी विभव प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करता है।
- निरोधी विभव, कैथोड से एनोड की ओर इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह का विरोध करता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि निरोधी विभव इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा का मापक है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि, । इस समीकरण का उपयोग करके हम उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा () ज्ञात कर सकते हैं।
- निरोधी विभव पर यदि हम आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाते हैं तो कोई प्रकाश-विद्युत धारा नहीं देखी जाती। अतः फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
(3) प्रकाश विद्युत धारा पर आपतित विकिरणों की आवृत्ति का प्रभाव
आपतित विकिरण की आवृत्ति पर प्रकाश-विद्युत धारा की निर्भरता का अध्ययन करने के लिए, हम विभिन्न आवृत्तियों के लेकिन समान तीव्रता के विकिरण लेते हैं।
प्रत्येक विकिरण के लिए हम, प्रकाश-विद्युत धारा और प्लेटों के मध्य विभवान्तर के परिवर्तन का अध्ययन करते हैं।
हम पाते हैं कि प्रारम्भ में आवृत्ति के निम्न मानों के लिए कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है, लेकिन एक निश्चित न्यूनतम मान से अधिक आवृत्ति के मान पर, धारा प्रवाहित होने लगती है और आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ धारा का मान भी बढ़ता है और कुछ समय पश्चात धारा का मान नियत(संतृप्त) हो जाता है। इसे संतृप्त धारा कहते हैं।
उपरोक्त आलेख से हम देखते हैं कि…
- विभिन्न आवृत्ति के विकिरणों के लिए निरोधी विभव (V0) का मान भिन्न होता है।
- उच्च आवृत्ति के विकिरणों के लिए निरोधी विभव का मान अधिक ऋणात्मक होता है।
- संतृप्त धारा का मान आपतित विकिरणों की तीव्रता पर निर्भर करता है किन्तु आपतित विकिरणों की आवृत्ति पर निर्भर नहीं करता।
आवृत्ति का वह न्यूनतम मान जिस पर धातु की सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है, देहली आवृत्ति (ν0) कहलाती है और देहली आवृत्ति के संगत अधिकतम तरंगदैर्ध्य को देहली तरंगदैर्ध्य (λ0) कहा जाता है। देहली आवृत्ति और देहली तरंगदैर्ध्य के मान किसी धातु या पदार्थ की विशेषताएँ हैं और ये विभिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होते हैं।
आपतित प्रकाश की आवृत्ति(ν) के साथ निरोधी विभव (V0) में परिवर्तन
दो अलग-अलग धातुओं A और B के लिए, निरोधी विभव और आपतित विकिरण की आवृत्ति के मध्य निम्न आलेख प्राप्त होता है :-
उपरोक्त आलेख से हम देखते हैं कि :-
- किसी दी गई धातु के लिए निरोधी विभव आपतित विकिरण की आवृत्ति के साथ रैखिक रूप से परिवर्तित होता है।
- प्रत्येक धातु के लिए एक निश्चित न्यूनतम आवृत्ति होती है, जिसके लिए निरोधी विभव शून्य होता है, जिसे देहली आवृत्ति (ν0)कहते है।
- किसी दी गई धातु के लिए कार्य फलन जितना अधिक होगा, देह्ली आवृत्ति का मान भी उतना ही अधिक होगा।
- हम जानते हैं कि ⇒ । पदों को व्यवस्थित करने पर, । यह एक सरल रेखा की समीकरण है जिसका विभव अक्ष पर अन्तः खंड = = है।
अतः हम कह सकते हैं कि कार्य फलन Φ0 = e × विभव अक्ष पर अंत:खंड का परिमाण।
प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम
(Dual nature of Matter and Radiation notes in Hindi)
- किसी दिए गए प्रकाश संवेदी पदार्थ के लिए और आपतित विकिरण की आवृत्ति के दिए गए मान के लिए, प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।
- प्रत्येक प्रकाश संवेदी पदार्थ के लिए आपतित विकिरण की आवृत्ति का एक निश्चित न्यूनतम मान होता है, जिसके नीचे फोटोइलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता है। इस आवृत्ति को देहली आवृत्ति (ν0) कहा जाता है।
- देहली आवृत्ति के ऊपर, उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित विकिरण की आवृत्ति पर निर्भर करती है और आपतित विकिरण की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती।
- यदि आपतित विकिरण की आवृत्ति देहली आवृत्ति के बराबर या इस से अधिक है, तो विकिरण के आपतित होने और फोटोइलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के बीच कोई समय अंतराल (10-9 सेकंड या उससे कम) नहीं होती है। इसलिए प्रकाश विद्युत प्रभाव एक तात्कालिक प्रक्रिया है।
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sir, today notes.
यही तो हैं…