आवेशित और अनावेशित वस्तुओं का भुसम्पर्कन
आवेशित और अनावेशित वस्तुओं का भुसम्पर्कन :- वैद्युत विश्लेषण में पृथ्वी को एक बहुत बड़े चालक गोले के रूप में माना जाता है, जिसकी त्रिज्या लगभग 6400 किलोमीटर है। यदि पृथ्वी को कोई आवेश Q दिया जाए तो उसका विभव हो जाता है :
चूँकि RE का मान बहुत अधिक है, इसलिए VE का मान नगण्य (बहुत छोटा) आता है। अतः पृथ्वी की तुलना में बहुत छोटे आकार की वस्तुओं के लिए हम यह मान सकते हैं कि पृथ्वी का विभव सदैव शून्य रहता है।
यदि हम किसी छोटी वस्तु को पृथ्वी से जोड़ते हैं, तो वस्तु और पृथ्वी के मध्य आवेश का प्रवाह तब तक होता है जब तक कि दोनों का विद्युत विभव समान (अर्थात शून्य) न हो जाए। चाहे आवेश पृथ्वी में प्रवाहित हो अथवा पृथ्वी से बाहर, पृथ्वी का विभव सदैव शून्य ही रहता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई निकाय धनात्मक विभव पर हो और उसे पृथ्वी से जोड़ा जाए, तो पृथ्वी उस निकाय को कुछ ऋणात्मक आवेश प्रदान करेगी ताकि अंत में उस निकाय का विभव शून्य हो जाए।
R त्रिज्या के एक उदासीन ठोस चालक गोले पर विचार करें जिसके केंद्र से x दूरी पर एक बिंदु आवेश q रखा गया है, जैसा कि चित्र में दर्शाया गया है।
q आवेश से प्रेरण के कारण चालक गोले पर आवेश उपरोक्त चित्र के अनुसार प्रेरित होंगे। q आवेश के कारण गोले पर विद्युत विभव :
[क्यूंकि चालक का प्रष्ठ एक समविभव प्रष्ठ होता है, इसलिए गोले के प्रत्येक बिंदु का विभव समान है और इसलिए q आवेश के कारण गोले का विभव ज्ञात करने के लिए सुविधानुसार केंद्रे से दूरी x ली गई है।]
यहाँ गोले का विद्युत विभव ज्ञात करने के लिए प्रेरित आवेशों की उपेक्षा की गई है, क्यूंकि प्रेरित आवेशों के कारण कुल विभव शुन्य होगा।
प्रेरित आवेश (qin) के कारण बिंदु A का विद्युत विभव :
प्रेरित आवेश (qin) के कारण बिंदु B का विद्युत विभव :
प्रेरित आवेश (qin) के कारण बिंदु C का विद्युत विभव :
अब यदि स्विच S को बंद करके गोले का भुसम्पर्कन कर दिया जाए तो गोले का विभव शुन्य हो जाएगा और इसके लिए पृथ्वी से कुछ मात्र में ऋणावेश गोले में प्रवाहित होगा। माना पृथ्वी से गोले पर qE स्थानांतरित होता है।
क्यूंकि गोला भूसम्पर्कित है, अतः गोले का कुल विद्युत विभव :
यहाँ स्पष्ट है कि पृथ्वी ने ऋणात्मक आवेश प्रदान किया है ताकि चालक पर ऋणात्मक विभव उत्पन्न हो सके और आवेश q के कारण उत्पन्न प्रारंभिक धनात्मक विभव को निरस्त किया जा सके।
विशेष टिप्पणी
सदैव याद रखें कि जब किसी धात्विक पिंड को पृथ्वी से जोड़ा जाता है, तो हम मानते हैं कि पृथ्वी कुछ आवेश (qE) प्रदान करती है या पिंड से आवेश लेती है ताकि उस पिंड तथा उसके चारों ओर स्थित सभी आवेशों के कारण उत्पन्न कुल विभव को शून्य कर सके।
आवेशित और अनावेशित वस्तुओं के भुसम्पर्कन पर आंकिक प्रश्न हल करने के लिए एक उदाहरण :
चित्रानुसार, तीन संकेन्द्रीय पतले गोलाकार चालक कोष A, B और C माने गए हैं, जिनकी त्रिज्याएँ क्रमशः a, b और c हैं। कोष A और C को क्रमशः आवेश qA और qC प्रदान किए गए हैं, तथा कोष B को भू-संपर्कित (earthed) किया गया है।
हमारा उद्देश्य कोष A, B और C की आंतरिक तथा बाहरी सतहों पर स्थित आवेशों का निर्धारण करना है। इस प्रकार की समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित बिंदुओं का ध्यान रखना आवश्यक है :
(1). संपूर्ण आवेश कोष A की बाहरी सतह पर आएगा, जब तक कि A के अंदर कोई आवेश न रखा जाए।
इसे समझने के लिए हम कोष A के पदार्थ के भीतर स्थित एक काल्पनिक गोलाकार गाऊसीय प्रष्ठ पर विचार करते हैं। चूंकि चालक पदार्थ के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है, अतः इस गाऊसीय प्रष्ठ से होकर गुजरने वाला कुल फ्लक्स भी शून्य होगा। गॉस के नियम के अनुसार, इस प्रष्ठ द्वारा संलग्न कुल आवेश भी शून्य होना चाहिए। इसलिए कोष A का सम्पूर्ण आवेश उसके बाह्य प्रष्ठ पर आ जाता है।
(2). इसी प्रकार, यदि हम कोष B के पदार्थ भीतर एक काल्पनिक गोलाकार गाऊसीय प्रष्ठ पर विचार करें, तब :
q1 + = 0
⇒ q1 = –
और इसी प्रकार कोष C के पदार्थ में एक काल्पनिक गोलाकार गाऊसीय प्रष्ठ मानें, तब :
q3 + + + = 0
⇒ q3 = –
(3). चूंकि कोष C को दिया गया आवेश qC था, अतः
+ = qC
(4). चूंकि कोष B को भू-सम्पर्कित किया गया है, इसलिए B का विभव शून्य होना चाहिए। अतः
उपरोक्त समीकरणों (1), (2), (3) और (4) का उपयोग करके हम विभिन्न पृष्ठों पर आवेशों के मान ज्ञात कर सकते हैं।
संक्षेप में :
- चालक के भीतर गाऊसीय प्रष्ठ द्वारा परिबद्ध कुल आवेश शून्य होता है।
- भू-संपर्कित चालक का विभव शून्य होता है।
- संपर्कित चालक समान विभव पर होते हैं।
- भू-संपर्कित चालकों को छोड़कर अन्य सभी चालकों पर आवेश नियत रहता है।
- आंतरिक कोष के भीतरी प्रष्ठ पर आवेश शून्य रहेगा यदि उसके भीतर कोई आवेश न रखा गया हो।
- सामने-सामने के पृष्ठों पर समान परिमाण व विपरीत प्रकृति के आवेश प्रेरित होते हैं।