श्रेणी अनुनादी परिपथ
श्रेणी अनुनादी परिपथ :- ऐसा परिपथ जिसमें एक प्रेरक (L), एक संधारित्र (C) और एक प्रतिरोध (R) श्रेणीक्रम में संयोजित हों व एक विशिष्ट आवृत्ति (अनुनादी आवृत्ति) पर परिपथ में प्रतिबाधा न्यूनतम (Zmin) तथा धारा का मान अधिकतम (Imax) हो उसे श्रेणी अनुनादी परिपथ कहते हैं।
अनुनाद की शर्त व अनुनादी आवृत्ति (ωr)
हम जानते हैं की श्रेणी RLC परिपथ की प्रतिबाधा (Z)
…..(1)
निम्न आवृत्ति पर प्रेरकीय प्रतिघात (XL) का मान अल्प होता है किन्तु धारितीय प्रतिघात (XC) का मान उच्च होता है। जैसे – जैसे आवृत्ति में वृद्धि होती है, XL का मान बढ़ता है व XC का मान घटता है और एक विशिष्ट आवृत्ति ω (= ωr) पर,
यही अनुनाद की शर्त है।
…..(2)
…..(3)
समीकरण (2) व (3) द्वार दी गई आवृत्ति पर क्यूंकि, , अतः
…..(4)
अर्थात् इस आवृत्ति पर श्रेणी RLC परिपथ की प्रतिबाधा न्यूनतम होती है व विद्युत धारा अधिकतम होती है :
…..(5)
इसी प्रकार,
…..(6)
इस आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति (Resonance Frequency) (ωr = 2πνr) कहते हैं।
श्रेणी अनुनादी परिपथ की विशेषताएँ
(1) कुल प्रतिघात (X)
अर्थात श्रेणी अनुनादी परिपथ का कुल प्रतिघात शुन्य होता है।
(2) प्रतिबाधा (Z)
अर्थात श्रेणी अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा का मान न्यूनतम होता है व यह प्रतिरोध के बराबर होता है।
(3) परिपथ में धारा का मान (I)
धारा का शिखर मान,
धारा का RMS मान,
क्यूंकि अनुनाद के समय प्रतिबाधा का मान न्यूनतम होता है अतः परिपथ में धारा का मान अधिकतम होता है।
(4) हम जानते हैं कि श्रेणी RLC परिपथ में,
अनुनाद की अवस्था में XL = XC, अतः
अर्थात अनुनाद की अवस्था में परिणामी वोल्टता व धारा समान कला में होते हैं।
(5) प्रेरक (L) व संधारित्र (C) के सिरों पर विभवांतर परिमाण में समान व कला में विपरीत (180º) होते हैं अर्थात,
इस प्रकार आरोपित वोल्टता का किसी भी समय मान, प्रतिरोध (R) के सिरों पर विभवांतर () के बराबर होता है।
अनुनादी वक्र (Resonance Curve)
परिपथ में प्रवाहित धारा के मान (I0 अथवा Irms ) व आरोपित प्रत्यावर्ती स्त्रोत की आवृत्ति (ω = 2πν) के मध्य आलेख को अनुनादी वक्र कहते हैं। श्रेणी RLC परिपथ में प्रवाहित धारा :
…..(7)
उपरोक्त समीकरण से धारा (Irms) तथा आवृत्ति (ω) के मध्य निम्न आलेख (अनुनादी वक्र) प्राप्त होता है :-
उपरोक्त वक्र से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में आवृत्ति बढ़ने पर धारा का मान बढ़ता है और एक सिश्चित आवृत्ति पर प्रत्यावर्ती धारा का मान अधिकतम हो जाता है। इस आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति (Resonance Frequency/ Resonating Frequency) कहते हैं। इस आवृत्ति से अधिक आवृत्ति होने पर पुनः धारा का मान घटने लगता है। इसी प्रकार प्रतिबाधा (Z) व आवृत्ति (ω) के मध्य निम्न आलेख प्राप्त होता है :
अर्धशक्ति बिंदु और अर्धशक्ति आवृत्तियाँ (Half Power points and Half power frequencies)
अनुनादी वक्र में अनुनादी आवृत्ति पर धारा का मान व परिपथ में विद्युत शक्ति (Pmax) अधिकतम होता है। इस आवृत्ति के दोनों ओर आवृत्ति के घटने और बढ़ने पर धारा और विद्युत शक्ति का मान घटता है। अनुनादी आवृत्ति (ωr) के दोनों ओर आवृत्ति के दो ऐसे मान हैं (ω1 व ω2) जिन पर परिपथ में विद्युत शक्ति का मान, अधिकतम विद्युत शक्ति (Pmax) का आधा है। इस आवृत्तियों को अर्धशक्ति आवृत्तियाँ (Half power frequencies) कहते हैं व आलेख पर स्थित बिन्दुओं P1 व P2 को अर्धशक्ति बिंदु (Half power points) कहते हैं।
अर्धशक्ति बिन्दुओं P1 व P2 पर धारा का मान :
क्यूंकि अर्धशक्ति बिन्दुओं, शक्ति (P) = Pmax/2, अतः
अतः उपरोक्त समीकरण से, अर्धशक्ति बिन्दुओं पर धारा का मान उसके अधिकतम मान () का गुना रह जाता है।
बैंड चौड़ाई (Band width) (β)
अर्धशक्ति आवृत्तियाँ के मध्य के अंतराल को बैंड चौड़ाई कहते हैं। बैंड चौड़ाई को β से प्रदर्शित करते हैं।
नोट :-
अनुनाद की स्थिति में श्रेणी अनुनादी परिपथ की प्रतिबाधा न्यूनतम होती है, और यह कई आवृत्तियों वाली धाराओं में से अनुनादी आवृत्ति वाली धारा को अधिक प्रवाहित होने देता है। अर्थात् इस परिपथ में अनुनादी आवृत्ति के बराबर वाली आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा अधिक होती है, अतः यह स्वीकारी-परिपथ (Acceptor Circuit) कहलाता है। रेडियो या TV ट्यून करने के लिये हम परिपथ की आवृत्ति को इच्छित स्टेशन की आवृत्ति के बराबर करते है। रेडियो में एक श्रेणी L-C परिपथ होता है जो एंटीना से जुड़ा होता है। ट्यूनर की घुंडी (knob) घुमाकर परिपथ में जुड़े संधारित्र की धारिता को इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि L-C परिपथ किसी एक स्टेशन की आवृत्ति के साथ अनुनादित हो जाए। फिर उस आवृत्ति के संगत धारा का मान अधिकतम हो जाता है और अन्य स्टेशनों की आवृत्ति के संगत धारा का मान क्षीण हो जाता है। अतः इस प्रकार हमें चुने गए स्टेशन के संगत कार्यक्रम सुनाई देता है।
इस प्रकार किसी विशेष आवृत्ति को छांटने (filter) की क्रिया को सम-स्वरण (tuning) कहते हैं और श्रेणी L-C परिपथ को सम-स्वरण परिपथ (tuning circuit) भी कहा जाता है।