प्रेरक पर प्रयुक्त AC वोल्टता
प्रेरक पर प्रयुक्त AC वोल्टता :- माना एक शुद्ध प्रेरक L (प्रेरक जिस चालक तार से बना होता है उसका कुछ प्रतिरोध होता है किन्तु हम यह प्रतिरोध नगण्य मान कर चल रहे हैं) से एक प्रत्यावर्ती विद्युत स्रोत संयोजित किया गया है जैसा कि नीचे चित्र (a) में प्रदर्शित है।
माना प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है :-
…..(1)
यदि dI/dt किसी समय परिपथ में धारा परिवर्तन की दर हो तब इस क्षण प्रेरक L के सिरों पर प्रेरित विद्युत वाहक बल :
…..(2)
यहाँ ऋणात्मक चिन्ह यह दर्शाता है की प्रेरित विद्युत वाहक बल (e), धारा परिवर्तन का विरोध करता है। परिपथ में विधुत धारा का प्रवाह निरंतर बनाए रखने के लिए, आरोपित प्रत्यावर्ती वोल्टता (E) का मान प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) के बराबर व दिशा में विपरीत होना चाहिए, अर्थात्
दोनों ओर समाकलन करने पर,
…..(3)
यहाँ c एक समाकलन नियतांक है जिसकी विमाएँ समय की हैं। अब क्यूंकि आरोपित विद्युत स्रोत एक प्रत्यावर्ती स्रोत हैं, अतः परिपथ में प्रवाहित विधुत धारा भी प्रत्यावर्ती है। अर्थात विधुत धारा का मान किसी भी समय नियत नहीं हो सकता। अतः समाकलन नियतांक c का मान शून्य है। अतः समीकरण (3) से
…..(4)
धारा का अधिकतम मान,
…..(5)
अतः परिपथ में प्रवाहित विधुत धारा
…..(6)
समीकरण (1) व (6) से,
आरोपित प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल की कला = ωt
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की कला = ωt – (π/2)
अतः शुद्ध प्रेरक L युक्त परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल से (π/2) कला कोण पीछे रहती है। इस तथ्य को उपरोक्त चित्र (b) में फेजर आरेख द्वारा व चित्र (c) में तरंग आरेख द्वारा दर्शाया गया है।
प्रेरणिक प्रतिघात (Inductive Reactance – XL)
समीकरण (5) की ओम के नियम से तुलना करने पर हम पाते हैं कि प्रेरक L द्वारा विद्युत धारा के मार्ग में प्रभावी प्रतिरोध ωL है। इसलिए ωL को प्रेरण प्रतिरोध अथवा प्रेरणिक प्रतिघात कहते हैं। अतः प्रेरणिक प्रतिघात :
…..(7)
जहाँ ν प्रत्यावर्ती विद्युत स्रोत की आवृत्ति है। एक दिए गए प्रेरक के लिए,
…..(8)
अर्थात प्रेरणिक प्रतिघात, आवृत्ति के समानुपाती होता है इसलिए XL व ν के मध्य आलेख एक सरल रेखा प्राप्त होती है :-
दिष्ट धारा के लिए आवृत्ति ν = 0, अतः , अर्थात् एक शुद्ध प्रेरक दिष्ट धारा के मार्ग में कोई प्रतिरोध उत्पन्न नहीं करता।
प्रेरणिक प्रतिघात के मात्रक
अतः प्रेरणिक प्रतिघात के S.I. मात्रक ओम (Ω) है।
प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता (Inductive Susceptance) (SL)
प्रेरणिक प्रतिघात के व्युत्क्रम को प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता अथवा प्रेरण चालकत्व कहते हैं।
…..(9)
SL के S.I. मात्रक Ω-1 अथवा mho है।
औसत शक्ति (Average Power)
शुद्ध प्रेरक युक्त परिपथ की तात्क्षणिक शक्ति,
अब एक पूर्ण चक्र में (sin 2ωt) का मान शून्य होता है, अतः एक पूर्ण चक्र में परिपथ की औसत शक्ति :-
इस प्रकार एक पूर्ण चक्र में शुद्ध प्रेरक को आपूर्त (Supplied) औसत शक्ति शून्य होती है ।
उदाहरण 1
NCERT Example 7.2
25.0 mH का एक शुद्ध प्रेरक 220 V के एक स्रोत से जुड़ा है। यदि स्रोत की आवृत्ति 50 Hz हो तो परिपथ का प्रेरकीय प्रतिघात एवं rms धारा ज्ञात कीजिए।
हल :-
प्रेरकीय प्रतिघात
परिपथ में धारा का rms मान
उदाहरण 2
NCERT Example 7.5
एक प्रकाश बल्ब और एक सरल कुंडली प्रेरक, एक कुंजी सहित, चित्र में दर्शाए अनुसार, एक ac स्रोत से जोड़े गए हैं। स्विच को बंद कर दिया गया है और कुछ समय पश्चात एक लोहे की छड़ प्रेरक कुंडली के अंदर प्रविष्ट कराई जाती है।
छड़ को प्रविष्ट कराते समय प्रकाश बल्ब की चमक (a) बढ़ती है (b) घटती है (c) अपरिवर्तित रहती है। कारण सहित उत्तर दीजिए।
हल :
जैसे-जैसे लोहे की छड़ कुंडली में प्रवेश करती है कुंडली के अंदर का चुंबकीय क्षेत्र इसे चुंबकित कर देता है जिससे कुंडली के अंदर चुंबकीय क्षेत्र बढ़ जाता है। अतः कुंडली का प्रेरकत्व बढ़ जाता है। परिणामतः कुंडली का प्रेरकीय प्रतिघात बढ़ जाता है। इस प्रकार प्रयुक्त ac वोल्टता का अधिकांश भाग प्रेरक के सिरों के बीच प्रभावी हो जाता है और बल्ब के सिरों के बीच वोल्टता कम रह जाती है। अतः बल्ब की दीप्ति कम हो जाती है।