न्यूट्रॉन की खोज | न्यूट्रॉन की खोज किसने की
न्यूट्रॉन की खोज | न्यूट्रॉन की खोज किसने की :- रदरफोर्ड ने 1911 में नाभिक की खोज की और 1919 में प्रोटॉन का अवलोकन किया था। हालाँकि, ऐसा लगता था कि नाभिक में प्रोटॉन के अलावा भी कुछ होना चाहिए क्योंकि एक ही तत्व के कुछ परमाणु ऐसे हैं, जो समान रासायनिक गुण प्रदर्शित करते हैं, किन्तु इनके द्रव्यमान भिन्न होते हैं(ऐसे परमाणुओं को समस्थानिक(Isotopes) कहते हैं)।
उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन में द्रव्यमान अनुपात 1:2:3 के साथ तीन प्रकार के नाभिक पाए गए (जिन्हें हाइड्रोजन, ड्यूटेरियम और ट्रिटियम कहा जाता है, यानी 1H1,1H2 and 1H3)।
इसलिए, ड्यूटेरियम (1H2) और ट्रिटियम (1H3) के नाभिक में, एक प्रोटॉन के अलावा, कुछ उदासीन पदार्थ होना चाहिए (क्योंकि संपूर्ण परमाणु उदासीन है)।
1928 में, एक जर्मन भौतिक विज्ञानी, वाल्टर बोथे और उनके छात्र, हर्बर्ट बेकर ने, पोलोनियम से उत्सर्जित अल्फा कणों के साथ बेरिलियम (Be) पर बमबारी की और पाया कि कुछ प्रकार की किरणें उत्सर्जित होती हैं, जिनकी उच्च भेदन क्षमता किन्तु कम आयनीकरणक्षमता होती है और ये विद्युत रूप से उदासीन होती हैं (क्यूंकि ये विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र द्वारा विक्षेपित नहीं होतीं ), जिसकी उन्होंने उच्च-ऊर्जा गामा फोटॉन के रूप में व्याख्या की।
इन किरणों में लगभग 7Mev की ऊर्जा पाई गई (विभिन्न मोटाई की सीसे की चादरों द्वारा इन किरणों के अवशोषण से ऊर्जा के मान का अनुमान लगाया गया)। लेकिन ऊर्जा का यह मान गामा-किरणों की ऊर्जा से अधिक है। इसलिए वे γ-किरणें नहीं हो सकते।
1932 में, आइरीन जूलियट-क्यूरी(Irene Joliot-Curie) (मैडम क्यूरी की बेटियों में से एक) और उनके पति, फ्रेडरिक जूलियट-क्यूरी(Frederic Joliot-Curie) ने बोथे के प्रयोग की और जांच करने का निर्णय लिया।
उन्होंने पाया कि बेरिलियम से निकलने वाली इन किरणों में आयनीकरण क्षमता नहीं होती (बेरिलियम से निकलने वाली किरणों के सामने रखे गए आयनीकरण कक्ष में कोई आयनीकरण नहीं पाया गया) लेकिन जब मोम (paraffin wax) को किरणों और आयनीकरण कक्ष के मध्य रखा जाता है, तो उन्होंने उच्च आयनीकरण क्षमता प्रदर्शित की ।
यह खोज अद्भुत थी क्योंकि γ-किरण फोटॉनों का कोई द्रव्यमान नहीं होता।
मैडम क्यूरी ने इन परिणामों की व्याख्या पैराफिन में हाइड्रोजन परमाणुओं पर γ-किरण फोटॉन की क्रिया के रूप में की। उन्होंने सोचा कि यह कॉम्पटन प्रभाव के कारण है, जिसमें धातु की सतह पर टकराने वाले फोटॉन इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकालते हैं।
लेकिन एक समस्या थी, क्योंकि प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन से 1,836 गुना भारी होता है और γ-किरण फोटॉन में इतनी ऊर्जा नहीं होती कि वह प्रोटॉन को पैराफिन से बाहर निकाल सके। इसके अलावा पैराफिन मोम से निकलने वाले प्रोटॉन की ऊर्जा 4.5 MeV पाई गई, इसलिए यदि हम बेरिलियम से निकलने वाली किरणों को γ-किरण फोटॉन मानते हैं, तो मोम से प्रोटॉन को बाहर निकालने के लिए इनकी ऊर्जा 55 MeV होनी चाहिए।
इस समस्या का समाधान 1932 में जेम्स चैडविक ने किया। उन्होंने कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में कैवेंडिश प्रयोगशाला में प्रयोगों को दोहराया। उन्होंने साबित किया कि बेरिलियम उत्सर्जन γ-किरणें नहीं हैं बल्कि उदासीन कण हैं जिनका द्रव्यमान लगभग प्रोटॉन के बराबर है। उन्होंने इन कणों को न्यूट्रॉन नाम दिया। न्यूट्रॉन को 0 n1 द्वारा दर्शाया जाता है क्योंकि इसका परमाणु क्रमांक शून्य (कोई आवेश नहीं) और परमाणु द्रव्यमान 1u है।
चैडविक ने निम्नलिखित समीकरण द्वारा बेरिलियम पर α-कणों की बमबारी को प्रदर्शित किया…
4Be9 + 2He4 → 6C12 + 0n1
न्यूट्रॉन नाभिक के अंदर स्थाई होता है किन्तु नाभिक के बाहर यह अस्थाई होता है और एक प्रोटॉन, एक इलेक्ट्रॉन और एक एंटीन्यूट्रिनो (एक अन्य प्राथमिक कण) में विघटित हो जाता है और इसका औसत जीवन लगभग 1000s होता है।
1935 में सर जेम्स चैडविक को न्यूट्रॉन की खोज के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार मिला।
न्यूट्रॉन के गुणधर्म
(न्यूट्रॉन की खोज)
1. ये उदासीन कण हैं क्योंकि ये विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र द्वारा विक्षेपित नहीं होते हैं।
2. विदुत रूप से उदासीन होने के कारण इनकी आयनीकरण क्षमता शून्य होती है।
3. न्यूट्रॉन का द्रव्यमान 1.675 x 10-27 kg (प्रोटॉन से थोड़ा भारी) होता है। यह नाभिक में स्थाई रहता है।
4. न्यूट्रॉन नाभिक के बाहर स्थाई नहीं होता है। यह β-कण (तेज़ गति से चलने वाला इलेक्ट्रॉन) और एक अन्य कण एंटीन्यूट्रिनो उत्सर्जित करके प्रोटॉन में परिवर्तित हो जाता है।
5. इसका औसत जीवन काल लगभग 1000s (लगभग 17 मिनट) है।
न्यूट्रॉन के उपयोग
(न्यूट्रॉन की खोज)
- न्यूट्रॉन का उपयोग कृत्रिम रेडियोधर्मिता(Artificial radioactivity) में किया जाता है।
- तापीय न्यूट्रॉन का उपयोग क्रिस्टल संरचना का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
- तापीय न्यूट्रॉन का उपयोग परमाणु विखंडन में किया जाता है।
- न्यूट्रॉन का उपयोग जीव विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान में किया जाता है। न्यूट्रॉन का उपयोग कैंसर के उपचार में किया जाता है।