चुंबकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा
चुंबकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा :- किसी चुंबकीय द्विध्रुव की चुंबकीय क्षेत्र में विशेष स्थिती के कारण उस में संचित उर्जा को चुंबकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं अथवा किसी चुंबकीय द्विध्रुव को चुंबकीय क्षेत्र के लम्बवत स्थिती से किसी भी अन्य कोणीय स्थिती तब लाने में किये गए कार्य को चुंबकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण M की एक दंड चुम्बक को जब एक समान चुंबकीय क्षेत्र B में θ कोण(M व B के मध्य) रखा जाता है तब इस पर एक प्रत्यानयन बलाघूर्ण τ = MB sinθ कार्य करता है जो दण्ड चुम्बक को स्थाई साम्यावस्था (M व B एक ही दिशा में) में लाने का प्रयास करता है। यदि दण्ड चुम्बक को स्थाई साम्यावस्था की स्थिति से किसी अन्य स्थिती में घुमाने का प्रयास किया जाए तो इस बलाघूर्ण के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। यही कार्य चुंबकीय द्विध्रुव में उसकी स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
अब चुंबकीय द्विध्रुव को प्रत्यानयन बलाघूर्ण τ के विरुद्ध अल्प कोण dθ से घुमाने में किया गया कार्य :-
द्विध्रुव को θ = θ1 से θ = θ2 तक घुमाने में किया गया कुल कार्य,
अतः चुंबकीय द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा,
…..(1)
यदि θ1 = 90° व θ2 = θ हो (स्थितिज ऊर्जा की परिभाषा से), तब
…..(2)
सदिश निरूपण में,
…..(3)
विशेष स्थितियां :-
- जब θ = 0°
यह न्यूनतम स्थितिज उर्जा की व्यवस्था है। इस अवस्था में छड़ चुम्बक स्थायी साम्यावस्था में होती है।
2. जब θ = 90°
अतः जब चुंबकीय द्विध्रुव, चुंबकीय क्षेत्र के लम्बवत होता है तब उसकी स्थितिज उर्जा शुन्य होती है।
3. जब θ = 180°
यह अधिकतम स्थितिज उर्जा की व्यवस्था है। इस अवस्था में छड़ चुम्बकअस्थायी साम्यावस्था में होती है।