दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण
दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण :- माना 2l प्रभावी लम्बाई की एक दण्ड चुम्बक की ध्रुव प्रबलता m है। इस दण्ड चुम्बक को एक समान चुम्बकीय क्षेत्र B में इस प्रकार रखा गया है कि चुम्बक के चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण (M) व चुम्बकीय क्षेत्र (B) के मध्य कोण θ है।
दण्ड चुम्बक के उत्तरी ध्रुव पर बल mB चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा में कार्य करेगा व दक्षिणी ध्रुव पर बल mB चुम्बकीय क्षेत्र B की विपरीत दिशा में कार्य करेगा। दोनों बल परिमाण में बराबर किन्तु दिशा में विपरीत हैं, अतः दण्ड चुम्बक पर परिणामी बल शुन्य है जिससे यह स्थानान्तरण गति नहीं करेगी, किन्तु इन बलों की क्रिया रेखाएं एक दिशा में नहीं हैं बल्कि इनके मध्य 2l sinθ लम्बवत दूरी है। इस कारण दण्ड चुम्बक पर एक बलाघूर्ण कार्य करेगा और यह घूर्णन गति करेगी।
यह बलाघूर्ण दण्ड चुम्बक को स्थाई साम्यावस्था (M व B एक ही दिशा में) में लाने का प्रयास करता है, अतः इसे प्रत्यानयन बलाघूर्ण(Restoring torque) कहते हैं।
बलाघूर्ण (τ) = बल (mB) × बलों की क्रिया रेखाओं के मध्य लम्बवत दूरी (2l sinθ)
⇒ τ = (m2l ) B sinθ
यहाँ m2l = M(चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण)
∴ τ = MB sinθ …..(1)
सदिश निरूपण में,
…..(2)
दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण की विशेष स्थितियाँ
- यदि θ = 0°(स्थाई साम्यावस्था), तब sinθ = 0 ⇒ τ = 0 अतः स्थाई साम्यावस्था की स्थिति में दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण शून्य होगा।
- यदि θ = 90°, तब sinθ = 1 ⇒ τ = MB (अधिकतम), इस स्थिति में बलाघूर्ण का मान अधिकतम होगा।
- यदि θ = 180°(अस्थाई साम्यावस्था), तब sinθ = 0 ⇒ τ = 0 अतः अस्थाई साम्यावस्था की स्थिती में दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण शून्य होगा। इस स्थिति से तनिक भी विचलित करने पर दण्ड चुम्बक स्थाई साम्यावस्था की ओर घूर्णन करती हुई बढ़ेगी और दोलन करना प्रारम्भ करेगी व अंत में विरामावस्था में आ जाएगी।
दण्ड चुम्बक पर बलाघूर्ण के सूत्र से चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण(M) की परिभाषा
समीकरण (1) में यदि B = 1T व θ = 90° तब, M = τ
अतः “एकांक चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत रखी दण्ड चुम्बक पर कार्यरत बलाघूर्ण का आंकिक मान दण्ड चुम्बक के चुंबकीय द्विध्रुव आघूर्ण के तुल्य होता है।”