आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण
(Einstein ka prakash vidyut prabhav samikaran)
आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण (Einstein ka prakash vidyut prabhav samikaran) :- आइंस्टीन ने प्रकाश विद्युत प्रभाव के विभिन्न नियमों की व्याख्या प्लैंक के क्रांतिकारी विचार, क्वांटम सिद्धांत (वर्ष 1900) के आधार पर की, जिसके अनुसार “ऊर्जा का उत्सर्जन व अवशोषण सतत रूप से नहीं होता है, लेकिन यह क्वांटा नामक ऊर्जा के पैकेट के रूप में होता है। विकिरण का यह ऊर्जा पैकेट फोटॉन कहा जाता है जो प्रकाश की गति से यात्रा करता है “।
फोटॉन एक भौतिक कण नहीं है। यह विद्युत रूप से उदासीन है और इसका विराम द्रव्यमान शून्य है।
प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा E = hν द्वारा दी जाती है।
जहाँ h प्लांक नियतांक है और ν प्रकाश की आवृत्ति है।
आइंस्टाइन के अनुसार, यदि धातु की सतह पर उपयुक्त आवृत्ति का एक फोटान गिरता है तो एक इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होता है।
फोटान की ऊर्जा(=hν) का उपयोग दो प्रकार से किया जाता है :-
- धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन को मुक्त करने के लिए (कार्य फलन Φ0 के बराबर ऊर्जा प्रदान करने के लिए)
- फोटान की शेष ऊर्जा (hν – Φ0) उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों को अधिकतम गतिज ऊर्जा (Kmax) प्रदान करने के लिए उपयोग की जाती है।
तो हम लिख सकते हैं कि :-
hν = Φ0 + Kmax
फोटोइलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा को इस प्रकार लिखा जा सकता है, Kmax = ½m(vmax)2
…..(1)
अथवा
…..(2)
इस समीकरण को आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण कहते हैं।
Or
…..(3)
हम Kmax = eV0 और ν = (c/λ) , ν0 = (c/λ0), भी लिख सकते हैं, इसलिए हम प्राप्त करते हैं,
यदि आपतित फोटोन की आवृत्ति, देहली आवृत्ति(ν0) के बराबर है, तो फोटॉन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह से केवल बाहर निकालने के लिए ही पर्याप्त है किन्तु उत्सर्जित इलेक्ट्रान की कोई गतिज ऊर्जा नहीं होगी।
उस स्तिथि में,
प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियमों की आइंस्टीन प्रकाश विद्युत प्रभाव से व्याख्या
(Einstein ka prakash vidyut prabhav samikaran)
- जैसा कि आइंस्टीन ने माना था कि यदि उपयुक्त आवृत्ति का एक फोटॉन धातु की सतह पर आपतित होता है, तो धातु की सतह से एक इलेक्ट्रॉन बाहर निकलता है, इसलिए, धातु की सतह से प्रति सेकंड निकलने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या धातु की सतह पर प्रति सेकंड आपतित होने वाले फोटॉनों की संख्या पर निर्भर करती है, अर्थात, प्रकाश की तीव्रता पर । इसलिए यदि आपतित प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि होती है, तो धातु की सतह पर प्रति सेकंड आपतित होने वाले फोटोन की संख्या बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होती है (प्रकाश विद्युत प्रभाव का प्रथम नियम)।
- यदि ν < ν0, तो समीकरण (3) से, अधिकतम K.E. ऋणात्मक होगी, जो कि संभव नहीं है क्यूंकि गतिज उर्जा कभी ऋणात्मक नहीं हो सकती। इसलिये इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन देहली आवृत्ति से कम आवृत्ति पर संभव नहीं है (प्रकाश विद्युत प्रभाव का द्वितीय नियम)।
- यदि ν > ν0, तो समीकरण (3) से, उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा Kmax आपतित विकिरण की आवृत्ति पर निर्भर करती है और आपतित विकिरण की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती (प्रकाश विद्युत प्रभाव का तृतीय नियम)।
- आइंस्टीन ने माना कि प्रकाश विद्युत प्रभाव में एक फोटोन और एक इलेक्ट्रॉन के मध्य प्रत्यास्थ टक्कर होती है। अतः प्रत्यास्थ टक्कर के पश्चात फोटोन की संपूर्ण ऊर्जा, तुरंत इलेक्ट्रॉन को स्थानांतरित कर दी जाती है। अतः प्रकाश के आपतन तथा इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन में समय पश्चता नहीं होती है (प्रकाश विद्युत प्रभाव का चतुर्थ नियम)।
आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण व प्रकाश विद्युत प्रभाव पर संख्यात्मक प्रश्न
(Einstein ka prakash vidyut prabhav samikaran)
उदाहरण 1.
जब 2Wm-2 तीव्रता व 10.6 eV फोटॉन का एक पुंज 1.0×10-4 m2 क्षेत्र व 5.6 eV कार्य फलन की प्लैटिनम सतह पर गिरता है, तो 53% आपतित फोटॉन इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकाल देते हैं। प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या और उनकी न्यूनतम और अधिकतम ऊर्जा (eV में) ज्ञात कीजिए।
हल:
तीव्रता :
जहाँ N, t समय में आपतित फोटॉनों की संख्या है।
क्यूंकि 53% आपतित फोटॉन इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकालते हैं, अतः
प्रति सेकंड उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की संख्या
फोटोइलेक्ट्रॉनों की न्यूनतम गतिज ऊर्जा, Kmin = 0 and
आइंस्टीन फोटोइलेक्ट्रिक समीकरण का उपयोग करते हुए फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा,
Kmax = E – Φ0 = (10.6 – 5.6)eV = 5 eV
उदाहरण 2.
4.9 eV की ऊर्जा वाला एक फोटॉन टंगस्टन से फोटोइलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करता है। जब उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन, एक समान चुम्बकीय क्षेत्र B = 2.5 mT में क्षेत्र की दिशा के साथ 60∘ के कोण पर प्रवेश करता है, तो इलेक्ट्रॉन के पेचदार पथ का चूड़ी अंतराल(pitch) 2.7 mm पाया गया । इलेक्ट्रॉन वोल्ट(eV) में धातु का कार्य फलन ज्ञात कीजिए। दिया है :- इलेक्ट्रॉन का विशिष्ट आवेश 1.76 x 1011 C/kg.
हल:
पेचदार पथ का चूड़ी अंतराल(pitch),
(क्यूंकि θ = 60º)
यहाँ
अतः चूड़ी अंतराल,
आइंस्टीन प्रकाश-विद्युत प्रभाव समीकरण का उपयोग करने पर
E = Φ0 + Kmax
⇒ Φ0 = E – Kmax
⇒ Φ0 = (4.9 – 0.4) eV
⇒ Φ0 = 4.5 eV
उदाहरण 3.
तरंगदैर्ध्य 2000 Å का एक पराबैंगनी प्रकाश एक सतह से फोटो उत्सर्जन करता है। निरोधी विभव 2 वोल्ट है। इलेक्ट्रॉन वोल्ट में कार्य फलन तथा उत्सर्जित फोटोइलेक्ट्रॉनों की अधिकतम चाल ज्ञात कीजिए।
हल:
आइंस्टीन प्रकाश-विद्युत प्रभाव समीकरण का उपयोग करने पर,
अब, क्यूंकि
⇒ vmax = 8.4 × 105 ms-1
उदाहरण 4.
मान लीजिए कि प्रकाश-विद्युत प्रभाव प्रयोग में आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 3000 Å से बढ़ाकर 3040Å कर दी जाती है। निरोधी विभव में संगत परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
हल:
आइंस्टीन प्रकाश-विद्युत प्रभाव समीकरण से
⇒ ΔV0 = 0.0545 Volt
उदाहरण 5.
400 nm तरंगदैर्घ्य का एक प्रकाश पुंज 2.2 eV कार्य फलन की धातु की प्लेट पर आपतित होता है। एक विशेष इलेक्ट्रॉन एक फोटॉन को अवशोषित करता है और धातु से बाहर आने से पहले दो टक्कर करता है। यह मानते हुए कि प्रत्येक टक्कर में इलेक्ट्रॉन की 10% अतिरिक्त ऊर्जा नष्ट हो जाती है, धातु से बाहर आने पर इस इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ज्ञात कीजिए। इन्हीं मान्यताओं के अनुसार, धातु से बाहर आने में असमर्थ होने के लिए इलेक्ट्रॉन की अधिकतम टक्करों की संख्या ज्ञात कीजिये।
हल:
याद रखें :-
पहली टक्कर के बाद इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
E1 = (E का 90 %) = 2.79 eV
दूसरी टक्कर के बाद इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
E2 = (E1 का 90 %) = 2.51 eV
इसलिए धातु की सतह से बाहर निकलने पर इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा,
KE = (2.51 – 2.2) eV = 0.31 eV
अब
तीसरी टक्कर के बाद इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
E3 = (E2 का 90 %) = 2.26 eV
चोथी टक्कर के बाद इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा
E4 = (E3 का 90 %) = 2.03 eV < Φ0
चोथी टक्कर के बाद इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा धातु के कार्य फलन से कम है, इसलिए इलेक्ट्रॉन धातु से बाहर नहीं निकल पाएगा।
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