सरल सूक्ष्मदर्शी
सरल सूक्ष्मदर्शी की परिभाषा
सरल सूक्ष्मदर्शी या आवर्धक लेंस कम फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस होता है।
सरल सूक्ष्मदर्शी का सिद्धांत
जब किसी वस्तु को एक उत्तल लेंस के सामने मुख्य अक्ष पर प्रकाशिक केंद्र व फोकस के मध्य रखा जाता है तो वस्तु का आभासी, सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बनता है।
सरल सूक्ष्मदर्शी का रेखाचित्र
चित्र में AB एक छोटी वस्तु है जिसे एक उत्तल लेंस के प्रकाशिक केंद्र(O) व फोकस(F) के मध्य रखा गया है, जिससे वस्तु का एक आवर्धित, सीधा व आभासी प्रतिबिंब बनता है। यह प्रतिबिंब प्रेक्षक के नेत्र पर β कोण बनाता है (चित्र में देखने पर यह कोण प्रकाशिक केंद्र पर बनता प्रतीत होता है परंतु क्योंकि प्रेक्षक का नेत्र प्रकाशिक केंद्र के अति निकट है, अतः इस कोण को नेत्र पर बना कोण भी कहा जाता है)। दूसरे चित्र में उसी वस्तु AB को प्रेक्षक के नेत्र के सामने स्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी (D) पर रखा गया है जिससे नेत्र पर α कोण बनता है(यह दूसरा चित्र तुलना करने के लिए है कि यदि प्रेक्षक के पास सरल सूक्ष्मदर्शी ना हो तब वस्तु उसके नेत्र पर कितना कोण बनाएगी)।
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता
सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता को प्रतिबिंब द्वारा नेत्र पर बने कोण(β) तथा बिम्ब द्वारा नेत्र पर बने कोण(α) के अनुपात से परिभाषित किया जाता है। अर्थात्
कोण β व α अत्यधिक छोटे हैं, अतः
…..(1)
चित्र में त्रिभुज ABO में,
…..(2)
इसी प्रकार त्रिभुज ABE में,
…..(3)
समीकरण (2) व (3) के मान समीकरण (1) में रखने पर,
…..(4)
चिन्ह परिपाटी का प्रयोग करने पर,
EB = -D व OB = -u
समीकरण (4) में EB व OB के मान रखने पर,
…..(5)
समीकरण (5), सरल सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता का सामान्य सूत्र(General Formula) है। u के भिन्न-भिन्न मानों के लिए आवर्धन क्षमता के भिन्न-भिन्न मान प्राप्त होंगे। आइए अब हम कुछ विशेष परिस्थितियों में आवर्धन क्षमता का मान ज्ञात करें।
विशेष परिस्थितियां
(1) जब अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी (D) पर बनता है
इस स्थिती में,
u = -u व v = -D और f = +f
लेंस सूत्र से,
समीकरण (5) से,
…..(6)
समीकरण (6) से स्पष्ट है, कि लेंस की फोकस दूरी f का मान जितना कम होगा, आवर्धन क्षमता (m) उतनी ही अधिक होगी। इसी कारण सरल सूक्ष्मदर्शी की परिभाषा में इसकी फोकस दूरी को कम बताया गया है।
(2) जब अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत (∞) पर बनता है
अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर बनने के लिए उत्तल लेंस के सामने बिम्ब फोकस बिंदु पर रखा होना चाहेए। अतः समीकरण (5) में u = f रखने पर,
…..(7)
[यहाँ आप सोच सकते हैं कि u = -f क्यूँ नहीं रखा गया ! ध्यान दीजिये के जब हमने समीकरण (5) व्युत्पन्न की थी, तब OB = -u रखते समय ऋणात्मक चिन्ह पहले ही रख दिया गया था।]
नोट :- समीकरण (7) में आवर्धन क्षमता समीकरण (5) से एक कम है, परंतु अनंत पर बने प्रतिबिंब को देखना अपेक्षाकृत अधिक आरामदायक होता है तथा आवर्धन में अंतर भी अपेक्षाकृत कम ही है। अतः यदि हमें सरल सूक्ष्मदर्शी से अधिक लंबे समय तक कार्य करना है, तब हम अनंत पर बने प्रतिबिंब को प्राथमिकता देंगे व आवर्धन क्षमता समीकरण (7) से दी जाएगी। वहीँ यदि कम समय तक कार्य करना है और अधिक आवर्धन क्षमता चाहिए, तब हम स्पष्ट दर्शन की न्यूनतम दूरी (D) पर बने प्रतिबिम्ब को प्राथमिकता देंगे और समीकरण (5) की आवर्धन क्षमता का सूत्र प्रयोग करेंगे।
सरल सूक्ष्मदर्शी के उपयोग
- छोटे पाठ को पढ़ना: सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग अक्सर पुस्तकों, समाचार पत्रों या दस्तावेजों में छोटे पाठ को पढ़ने के लिए किया जाता है, विशेष रूप से दृष्टिबाधित लोगों के लिए।
- आभूषणों और रत्नों का निरीक्षण करना: जौहरी और रत्नविज्ञानी रत्नों, हीरों और अन्य कीमती सामग्रियों की विशेषताओं और खामियों की बारीकी से जांच करने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं।
- घड़ी निर्माण/मरम्मत और सटीक कार्य: घड़ी बनाने वाले और सटीक शिल्प कौशल में शामिल व्यक्ति घड़ियों, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक और अन्य उपकरणों में छोटे घटकों का निरीक्षण और मरम्मत करने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग करते हैं।
- शिक्षा: विद्यार्थियों को माइक्रोस्कोपी के सिद्धांतों से परिचित कराने और विज्ञान कक्षाओं में छोटी वस्तुओं/नमूनों/वर्नियर पैमानों को पढ़ने के लिए सरल सूक्ष्मदर्शी का उपयोग किया जाता है।
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