समविभव पृष्ठ
समविभव पृष्ठ :- निम्न चित्र में यदि किसी आवेश को बिंदु A से B तक सतह M पर स्थानांतरित किया जाता है जो विद्युत क्षेत्र की दिशा के लंबवत है, तो कोई कार्य नहीं होता है क्योंकि आवेश पर विद्युत बल उसके विस्थापन की दिशा के लंबवत होता है।
चूँकि आवेश को A से B तक ले जाने में कोई कार्य नहीं किया जाता है, इसलिए हम कह सकते हैं कि A और B समान विभव पर हैं या हम कह सकते हैं कि सतह M के सभी बिंदु समान विभव पर हैं और इसलिए हम सतह M को “समविभव पृष्ठ” कहते हैं।
समविभव पृष्ठ की परिभाषा
वह पृष्ठ जिस पर विद्युत विभव नियत रहता है, समविभव पृष्ठ कहलाता है।
समविभव पृष्ठ की विशेषताएं
(1). किया गया कार्य शुन्य :
क्यूंकि कार्य W = q(VA−VB) और समविभव पृष्ठ पर (VA=VB) अतः, समविभव पृष्ठ पर आवेश को गति कराने में कोई कार्य नहीं किया जाता है।
(2). विद्युत क्षेत्र रेखाओं के लंबवत :
विद्युत क्षेत्र रेखाएँ सदैव समविभव पृष्ठ को समकोण (90°) पर काटती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि विद्युत क्षेत्र की दिशा, विद्युत विभव में अधिकतम परिवर्तन (ह्रास) की दिशा में होती है ।
(3). निकट पृष्ठ = प्रबल विद्युत क्षेत्र :
विद्युत क्षेत्र वहां प्रबल होता है जहां समविभव पृष्ठ निकट होती हैं। E =−dV/dr, जिसका अर्थ है कि एक अल्प दूरी पर विद्युत विभव में अधिक परिवर्तन एक प्रबल विद्युत क्षेत्र को दर्शाता है।
(4). समविभव पृष्ठ अलग-अलग आकार के हो सकते हैं :
(i). बिंदु आवेश के लिए, वे संकेन्द्रित गोलाकार कोश होते हैं। त्रिज्या r वाले कोश का विभव है।
(ii). एकसमान विद्युत क्षेत्र के लिए, वे क्षेत्र की दिशा के लंबवत समान दूरी पर स्थित समांतर तल होते हैं।
(iii). विद्युत द्विध्रुव के लिए ये गोलाकार नहीं होते बल्कि वक्राकार होते हैं और द्विध्रुव अक्ष के सममित होते हैं। प्रत्येक आवेश के निकट, समविभव पृष्ठ विकृत गोले की भांति देखाई देते हैं। मध्य बिंदु (द्विध्रुव का केंद्र) पर समविभव पृष्ठ, द्विध्रुव अक्ष के लंबवत, शून्य विभव (क्योंकि +q और –q के कारण विभव निरस्त होकर शून्य हो जाते हैं) का एक समतल होता है।
समविभव पृष्ठ के अनुप्रयोग
- शॉर्ट सर्किट (लघु पथन) रोकने के लिए विद्युत उपकरणों को डिजाइन करने में सहायक होते हैं।
- संधारित्र डिजाइन में उपयोगी होते हैं, जहां संधारित्र की प्लेटों को समविभव पृष्ठ माना जाता है।
- स्थिर वैद्युतिकी में आंकिक समस्याओं को हल करने में उपयोगी होते हैं, जैसा कि नीचे चर्चा की गई है :
(a). एकसमान विद्युत क्षेत्र में दो बिंदुओं के मध्य विभवान्तर ज्ञात करना : यदि हम दो बिंदुओं A और B के मध्य विभवांतर ज्ञात करना चाहते हैं जो एक समान विद्युत क्षेत्र में नीचे चित्र में दिखाए अनुसार समविभव पृष्ठों M1 और M2 पर स्थित हैं, तो यह विभवांतर निम्न प्रकार दिया जाता है :
VA – VB = Ed
(b).असमान विद्युत क्षेत्र में दो बिंदुओं के मध्य विभवान्तर ज्ञात करना : मान लीजिए कि एक रेखीय आवेश वितरण है जिसका रेखीय आवेश घनत्व λ C/m है। यहाँ हम दो बिंदुओं A और B के मध्य विभवांतर ज्ञात करना चाहते हैं।
रेखीय आवेश वितरण से r दूरी पर स्थित एक सामान्य बिंदु P पर विचार करें। बिंदु P पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता है :
अब बिन्दुओं A और B के मध्य विभवान्तर इस प्रकार दिया गया है :
उदाहरण 1.
एक बिंदु आवेश +Q को एक बिंदीदार वृत्त के केन्द्र पर रखा गया है।
A से B तक आवेश +q ले जाने में किया गया कार्य W1 है तथा A से C तक W2 है। तब :
(A) W1 > W2
(B) W1 < W2
(C) W1 = W2 = 0
(D) W1 = W2 ≠ 0
हल :
क्यूंकि संरक्षी बल क्षेत्र में, किया गया कार्य = स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन (आवेशित कण की उर्जा में परिवर्तन), इसलिए A से B तक :
W1 = q(VB – VA) …..(i)
इसी प्रकार A से C तक :
W2 = q(VC – VA) …..(ii)
किन्तु VB = VC , क्योंकि दोनों बिंदु समविभव प्रष्ठ पर स्थित हैं, अतः समीकरण (i) और (ii) से, हम कह सकते हैं की W1 = W2 ≠ 0. अतः विकल्प (D) सही है।
उदाहरण 2.
चित्र में चार समविभव प्रष्ठ दर्शाए गए हैं। एक इलेक्ट्रॉन को पथों 1, 2, 3 और 4 के अनुदिश गतिमान किया जाता है। यदि पथों के अनुदिश किये गए कार्य क्रमशः W1, W2, W3 और W4 हों, तो इनका मान eV में ज्ञात करो।
हल :
क्यूंकि किया गया कार्य = स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन, अतः
W1 = qΔV = (-e) (Vf – Vi) = (-e) (10 – 10)
⇒ W1 = 0
W2 = qΔV = (-e) (Vf – Vi) = (-e) (20 – 10)
⇒ W2 = – 10 eV
W3 = qΔV = (-e) (Vf – Vi) = (-e) (30 – 30)
⇒ W3 = 0
W4 = qΔV = (-e) (Vf – Vi) = (-e) (20 – 40)
⇒ W4 = + 20 eV
उदाहरण 3.
नीचे दिए गए चित्र में कुछ समविभव प्रष्ठ दर्शाए गए हैं। दिए गए समविभव पृष्ठों के लिए विद्युत क्षेत्र रेखाएँ खींचिए। विद्युत क्षेत्र के परिमाण और दिशा के बारे में आप क्या कह सकते हैं ?
हल :
विद्युत क्षेत्र रेखाएँ सदैव समविभव पृष्ठों के लंबवत होती हैं और विद्युत क्षेत्र की दिशा उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होती है। इस स्थिति में, समविभव प्रष्ठ 10 V, 20 V, 30 V और 40 V पर हैं। इसलिए, विद्युत क्षेत्र रेखाएँ 40 V प्रष्ठ से 10 V प्रष्ठ की ओर इंगित करेंगी।
विद्युत क्षेत्र का परिमाण, विभवांतर और समविभव पृष्ठों के मध्य की दूरी से निर्धारित किया जा सकता है। समविभव प्रष्ठ जितने निकट होते हैं, विद्युत क्षेत्र उतना ही प्रबल होता है। इस स्थिति में, चूँकि प्रष्ठ एक दुसरे से समदूरस्थ हैं, इसलिए यहाँ विद्युत क्षेत्र का परिमाण नियत है अर्थात यह एक समान विद्युत क्षेत्र है।
ΔABC में,
BA के अनुदिश विद्युत क्षेत्र की दिशा में आगे बढ़ने पर, हम पाते हैं dV = (20-30) = -10 वोल्ट.
अब क्यूंकि
विद्युत क्षेत्र x-अक्ष की धनात्मक दिशा के साथ (90°+30° =) 120° का कोण बना रहा है।