संधारित्र पर प्रयुक्त AC वोल्टता
संधारित्र पर प्रयुक्त AC वोल्टता :- माना एक शुद्ध संधारित्र से एक प्रत्यावर्ती विद्युत स्रोत संयोजित किया गया है जैसा कि नीचे चित्र (a) में प्रदर्शित है।
माना प्रत्यावर्ती वोल्टता को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है :-
…..(1)
जब संधारित्र के सिरों पर प्रत्यावर्ती वि.वा.ब. आरोपित किया जाता है तो परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित होती है। संधारित्र की दोनों प्लेटें निरन्तर क्रमिक रुप से धनावेशित तथा ऋणावेशित होती रहती है तथा प्लेटों पर आवेश का परिमाण समय के साथ ज्यावक्रीय रुप से (sinusoidally) परिवर्तित होता रहता है तद्नुसार प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र भी समय के साथ ज्यावक्रीय रुप से परिवर्तित होता रहता है।
माना किसी समय t पर संधारित्र की प्लेटों पर आवेश q है। अतः संधारित्र की प्लेटों के मध्य विभवांतर,
यदि किसी समय t पर परिपथ में धारा का मान I हो तब,
…..(2)
[यहाँ लिया गया है व का प्रयोग नहीं किया गया। इसका कारण यह है कि हमें समीकरण (2) में धारा I की तुलना समीकरण (1) में प्रत्यावर्ती वोल्टता E से करनी है व क्यूंकि समीकरण (1) में प्रत्यावर्ती वोल्टता E के फलन में +ωt है ना की -ωt अतः हमने का प्रयोग किया है।]
धारा का अधिकतम मान,
…..(3)
अतः परिपथ में प्रवाहित विधुत धारा
…..(4)
समीकरण (1) व (4) से,
आरोपित प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल की कला = ωt
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा की कला = ωt + (π/2)
अतः शुद्ध संधारित्र C युक्त परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती विद्युत वाहक बल से (π/2) कला कोण आगे रहती है। इस तथ्य को उपरोक्त चित्र (b) में फेजर आरेख द्वारा व चित्र (c) में तरंग आरेख द्वारा दर्शाया गया है।
धारितीय प्रतिघात (Capacitive Reactance – XC)
समीकरण (3) की ओम के नियम से तुलना करने पर हम पाते हैं कि संधारित्र C द्वारा विद्युत धारा के मार्ग में प्रभावी प्रतिरोध (1/ωC) है। इसलिए 1/ωC को धारितीय प्रतिघात कहते हैं। अतः धारितीय प्रतिघात :
…..(5)
जहाँ ν प्रत्यावर्ती विद्युत स्रोत की आवृत्ति है। एक दिए गए संधारित्र के लिए,
…..(6)
अर्थात धारितीय प्रतिघात, आवृत्ति के व्युत्क्रमानुपाती होता है इसलिए XC व ν के मध्य आलेख निम्न प्रकार प्राप्त होता है :-
दिष्ट धारा के लिए आवृत्ति ν = 0, अतः , अर्थात् एक शुद्ध संधारित्र दिष्ट धारा के मार्ग में अनंत प्रतिरोध उत्पन्न नहीं करता दूसरे शब्दों में एक शुद्ध संधारित्र से दिष्ट धारा प्रवाहित नहीं हो सकती।
धारितीय प्रतिघात के मात्रक
अतः प्रेधारितीय प्रतिघात के S.I. मात्रक ओम (Ω) है।
धारितीय अधिकल्पित प्रवेश्यता (Capacitive Susceptance) (SC)
धारितीय प्रतिघात के व्युत्क्रम को धारितीय अधिकल्पित प्रवेश्यता अथवा धारिता चालकत्व कहते हैं।
…..(7)
SC के S.I. मात्रक Ω-1 अथवा mho है।
औसत शक्ति (Average Power)
शुद्ध संधारित्र युक्त परिपथ की तात्क्षणिक शक्ति,
अब एक पूर्ण चक्र में (sin 2ωt) का मान शून्य होता है, अतः एक पूर्ण चक्र में परिपथ की औसत शक्ति :-
इस प्रकार एक पूर्ण चक्र में शुद्ध संधारित्र को आपूर्त (Supplied) औसत शक्ति शून्य होती है ।
उदाहरण 1.
NCERT Example 7.3
एक लैंप किसी संधरित्र के साथ श्रेणीक्रम में जुड़ा है। DC एवं AC संयोजनों के लिए अपने प्रेक्षणों की प्रागुक्ति कीजिए। प्रत्येक प्रकरण में बताइए कि संधरित्र की धारिता कम करने का क्या प्रभाव होगा ?
हल :
जब संधरित्र के साथ किसी DC स्रोत को संयोजित किया जाता है तो संधरित्र आवेशित होता है और उसके पूर्णतः आवेशित होने के पश्चात परिपथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती और लैंप प्रकाशित नहीं होता है। इस स्थिति में धारिता को कम करने से कोई परिवर्तन नहीं होगा।
AC स्रोत के साथ संयोजित करने पर परिपथ में संधरित्र का धरितीय प्रतिघात () आरोपित होता है और परिपथ में धारा प्रवाहित होती है। परिणामतः लैंप प्रकाशित होगा। धारिता को कम करने से धरितीय प्रतिघात में वृद्धि होगी और लैंप पहले की तुलना में कम दीप्ति से प्रकाशित होगा।
उदाहरण 2.
NCERT Example 7.4
15 μF का एक संधरित्र, 220 V, 50 Hz स्रोत से जोड़ा गया है। परिपथ का संधारित्रीय प्रतिघात और इसमें प्रवाहित होने वाली धारा का मान (rms एवं शिखर मान) बताइए। यदि आवृत्ति को दोगुना कर दिया जाए तो संधारित्रीय प्रतिघात और धारा के मान पर क्या प्रभाव होगा ?
हल :
संधारित्रीय प्रतिघात
परिपथ में प्रवाहित धारा,
धारा का शिखर मान,
आवृत्ति को दोगुना करने पर संधारित्रीय प्रतिघात आधा रह जाएगा व परिपथ में धारा का मान दोगुना हो जाएगा।
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