संधारित्र | संधारित्र किसे कहते हैं | संधारित्र का सिद्धांत
संधारित्र | संधारित्र किसे कहते हैं | संधारित्र का सिद्धांत :- अल्प स्थान में अधिक मात्रा में विद्युत आवेश और विद्युत ऊर्जा संचित करने के लिए व्यवस्था संधारित्र कहलाती है। सामान्यतया दो चालक जिन पर विपरीत आवेश होता है का युग्म, जिनके मध्य एक कुचालक माध्यम होता है जो कि निश्चित मात्रा का आवेश संचित कर सकता है, संधारित्र कहलाता है।
संधारित्र का सिद्धांत
(संधारित्र | संधारित्र किसे कहते हैं | संधारित्र का सिद्धांत)
संधारित्र का सिद्धांत इस तथ्य पर आधारित है कि धारिता को, विभव को घटाकर आवेश को नियत रखते हुए बढ़ाया जा सकता है।
माना एक चालक प्लेट M को धनात्मक आवेश Q तब तक दिया गया है जब तक इसका विद्युत विभव बढ़कर अधिकतम (V) हो जाता है। अब इसे और अधिक आवेश देने पर वह इस प्लेट से लीक होने लगेगा।
इस समय प्लेट M की धारिता,
धारिता वस्तुतः एक भौतिक गुण है जो इस पर निर्भर करता है :
- प्लेटों का आकर/ क्षेत्रफल (area)
- प्लेटों के मध्य की दूरी
- माध्यम की प्रकृति (परावैधुतांक K)
उदाहरण के लिए, एक समानांतर प्लेट संधारित्र की धारिता होती है :
यहाँ आप देख सकते हैं कि इसमें ना Q है, ना V।
फिर प्रश्न यह उठता है : “जब हम विभव को घटाते हैं तो धारिता बढ़ती है — तो क्या यह धारिता का V पर निर्भर होना नहीं है ?”
यहाँ पर एक बहुत बारीक बात छुपी है :
➡️ जब आप विभव घटाकर धारिता बढ़ाते हैं, तो आप Q को नियत रखते हैं। इसका मतलब यह है कि आप संधारित्र की ज्यामिति या माध्यम को बदल रहे हैं।
उदाहरण :
यदि आपने दो प्लेटों के मध्य कोई परावैद्युत पदार्थ डाल दिया —
- डाइलेक्ट्रिक विभव को घटाता है
- लेकिन Q को आप स्थिर मानते हैं
- इसलिए C=Q/V के अनुसार धारिता बढ़ जाती है
➡️ इसका मतलब ये हुआ कि आपने वास्तव में माध्यम को बदला, ना कि V को “स्वतंत्र रूप से” घटाया।
निष्कर्ष :
- धारिता V पर निर्भर नहीं करती, बल्कि संधारित्र की भौतिक रचना पर निर्भर करती है।
- जब हम कहते हैं कि “विभव घटाने से धारिता बढ़ती है”, तो इसका मतलब होता है कि हमने ऐसी कोई चीज़ (जैसे परावैद्युत पदार्थ डालना या दूरी घटाना) की जिससे V घटा और Q स्थिर रहा — इससे धारिता बढ़ गई।
- पर इसका यह मतलब नहीं कि C, V पर निर्भर करता है।
गणितीय उदाहरण :
🔷 स्थिति 1: परावैद्युत पदार्थ के बिना संधारित्र
मान लीजिए आपके पास एक समानांतर प्लेट संधारित्र है जिसकी :
- प्लेटों का क्षेत्रफल A = 1 m2
- प्लेटों के मध्य दूरी d = 1 mm = 10-3 m
- कोई परावैद्युत पदार्थ नहीं (तो K = 1)
- माना प्लेटों पर कुल आवेश Q = 1 μC = 10−6 C
धारिता :
विभव :
🔷 स्थिति 2: अब प्लेटों के मध्य परावैद्युत पदार्थ डालते हैं
अब मान लीजिए आपने संधारित्र को वैसे ही रखा, लेकिन प्लेटों के मध्य एक परावैद्युत पदार्थ डाल दिया जिसकी परावैधुतांक K = 5 है।
नई धारिता:
नया विभव:
🔶 अब समझिए इस बदलाव को :
परिवर्तन | पहले (परावैद्युत पदार्थ नहीं) | बाद में (परावैद्युत पदार्थ डाला) |
(आवेश) | 10-6 C | वही |
(धारिता) | 8.85 × 10−9 F | बढ़कर 44.25 × 10−9 F |
(विभव) | ≈ 113 V | घटकर ≈ 22.6 V |
🔷 निष्कर्ष :
- आपने परावैद्युत पदार्थ डालकर माध्यम बदला → यह एक भौतिक परिवर्तन है, जिससे धारिता बढ़ी।
- विभव घट गया, लेकिन यह परिणाम था — कारण नहीं।
- इसलिए धारिता विभव पर निर्भर नहीं करती, बल्कि विभव धारिता और आवेश के कारण बदलता है।