विस्थापन धारा का सूत्र | विस्थापन धारा
विस्थापन धारा का सूत्र | विस्थापन धारा :- विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव के अंतर्गत हम जानते हैं कि उत्पन्न होने वाले चुंबकीय क्षेत्र तथा प्रवाहित विद्युत धारा के मध्य संबंध को ऐम्पियर के परिपथीय नियम से निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जाता है :-
किंतु जब इस नियम का उपयोग संधारित्र के आवेशन व निरावेशन के समय किया जाता है तो यह नियम असंगत (Inconsistent) प्रतीत होता है।
माना एक समांतर पट्टिका संधारित्र को एक बैटरी के साथ संयोजित कर आवेशित किया जा रहा है। आवेशन की प्रक्रिया के समय संयोजक तार से प्रवाहित आवेशन धारा (charging current), समय के साथ परिवर्तित होती है।
अवेशन धारा के कारण संयोजी तार के चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। आवेशन (व निरावेशन) की प्रक्रिया के दौरान संधारित्र की प्लेटों के मध्य उत्पन्न विद्युत क्षेत्र परिवर्ती होता है, किंतु संधारित्र के पूर्णतः आवेशित हो जाने के पश्चात दोनों प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उपरोक्त आकृति में बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए बिंदु P से पारित होता हुआ एक वृताकार ऐम्पिरियन लूप बनाया गया है। ऐम्पियर के परिपथीय नियम का प्रयोग करने के लिए यदि तार के लंबवत समतल सतह S1 को चुना जाए, तब
यहाँ I(t) आवेशन धारा (charging current) अथवा परिचालन धारा (conduction current) है।
अब यदि उभरी हुई सतह S2 को चुना जाए (क्यूंकि ऐम्पियर के परिपथीय नियम में सतह को यादृच्छिक रूप से चुना जा सकता है, इससे परिणाम पर प्रभाव नहीं पड़ता), तब
उपरोक्त समीकरण (2) में धारा का मान शुन्य इस लिए लिया गया है, क्यूंकि उभरी हुई सतह S2 से (अर्थातः संधारित्र की प्लेटों के मध्य) कोई धारा प्रवाहित होती प्रतीत नहीं होती।
क्यूंकि दोनों सतहें S1 व S2 अत्यंत निकट स्थित हैं, अतः
अब एक प्रकार से गणना करें तो बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र का मान अशून्य प्राप्त होता है [समीकरण (1)] व दूसरी प्रकार से गणना करें तो बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र शून्य प्राप्त होता है [समीकरण (2)]। अतः समीकरण (1), (2) व (3) एक साथ तो मान्य नहीं हो सकतीं। इस प्रकार ऐम्पियर का परिपथीय नियम असंगत प्रतीत होता है।
क्योंकि यह विरोधाभास ऐम्पियर के परिपथीय नियम के कारण उत्पन्न होता है, अतः इस नियम में संभवतः कोई पद छूट गया है। छूटा हुआ यह पद ऐसा होना चाहिए कि चाहे हम किसी भी सतह का उपयोग करें (समतल सतह S1 का या उभरी हुई सतह S2 का) बिंदु P पर चुंबकीय क्षेत्र का समान मान प्राप्त होना चाहेए।
यदि हम संधारित्र के आवेशन के चित्र को ध्यानपूर्वक देखें तो इस विरोधाभास को दूर किया जा सकता है। क्या संधारित्र की प्लेटों के मध्य से पारित होती हुई किसी राशि के मान में परिवर्तन हो रहा है ? जी हाँ, वास्तव में उनके मध्य विद्युत क्षेत्र (E) परिवर्तित हो रहा है। अतः विरोधाभास को दूर करने के लिए मैक्सवेल ने कल्पना की कि न केवल चालक से बहने वाली परिचालन धारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है, बल्कि निर्वात अथवा किसी परावैद्युत माध्यम से पारित परिवर्ति विद्युत क्षेत्र के कारण भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो सकता है ।
अतः यह माना जा सकता है कि एक परिवर्ति विद्युत क्षेत्र, एक विद्युत धारा के समकक्ष होता है । यह विद्युत धारा उस समय तक उपस्थित मानी जा सकती है जब तक विद्युत क्षेत्र में परिवर्तन होता है। इस विद्युत धारा के कारण भी उसी प्रकार का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है जिस प्रकार एक चालक से बहने वाली चालन धारा अथवा परिचालन धारा (conduction current) के कारण उत्पन्न होता है। इस धारा को मैक्सवेल की विस्थापन धारा (displacement current) कहते हैं।
परिभाषा
(विस्थापन धारा का सूत्र | विस्थापन धारा)
वह विद्युत धारा जो विद्युत क्षेत्र अथवा विद्युत फ्लक्स में परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है, उसे विस्थापन धारा कहते हैं।
विस्थापन धारा का सूत्र (व्यंजक)
माना संधारित्र की प्लेटों का क्षेत्रफल A तथा किसी समय इसकी प्लेटों पर आवेश q है, तब प्लेटों के मध्य विद्युत क्षेत्र (E) का परिमाण होगा :
गाउस के नियम से प्लेटों के मध्य परिवर्ति विद्युत फ्लक्स (ΦE),
अब क्योंकि संधारित्र की प्लेटों पर आवेश q समय के साथ परिवर्तित हो रहा है, अतः विस्थापन धारा
अतः मैक्सवेल की विस्थापन धारा का सूत्र,
संशोधित ऐम्पियर का परिपथीय नियम
(विस्थापन धारा का सूत्र | विस्थापन धारा)
उपरोक्त विवेचना के आधार पर मैक्सवेल के अनुसार चुंबकीय क्षेत्र के दो स्रोत होते हैं :-
(i) संयोजक तारों से बहने वाली आवेशन धारा (charging current) अथवा परिचालन/चालन धारा (conduction current) और
(ii) संधारित्र की प्लेटों के मध्य परिवर्ति विद्युत क्षेत्र (E) या परिवर्ति विद्युत फ्लक्स (ΦE) के कारण उत्पन्न विस्थापन धारा (displacement current)
अतः संशोधित ऐम्पियर का परिपथीय नियम निम्न प्रकार है :
उपरोक्त समीकरण को ऐम्पियर-मैक्सवेल का परिपथीय नियम कहते हैं।
निष्कर्ष
फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियमानुसार प्रेरित विद्युत वाहक बल,
अतः समय परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र, विद्युत क्षेत्र को उत्पन्न करता है।
ऐम्पियर-मैक्सवेल के परिपथीय नियम से,
उपरोक्त सूत्र के अनुसार समय परिवर्ति विद्युत क्षेत्र, चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है।
इस प्रकार समीकरण (6) व (7) से समय परिवर्ति चुंबकीय क्षेत्र समय परिवर्ति विद्युत क्षेत्र को उत्पन्न करता है और समय परिवर्ती विद्युत क्षेत्र, समय परिवर्ति चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करता है । अतः एक ऐसी तंरग उत्पन्न होती है जिसमें विद्युत क्षेत्र एवं चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन, एक दूसरे की उत्पत्ति के स्त्रोत हैं। इस तरंग को विद्युत चुंबकीय तरंग कहते हैं।