वाटहीन धारा | वाटहीन धारा क्या है ?
वाटहीन धारा | वाटहीन धारा क्या है ? :- वह विद्युत धारा जो परिपथ में विद्युत शक्ति का व्यय नहीं करती उसे वाटहीन धारा (Wattless Current) अथवा कार्यहीन धारा (Idle Current) कहते हैं।
हम जानते हैं की किसी प्रत्यावर्ती परिपथ में औसत शक्ति, आभासी वि. वा. बल (Erms), आभासी धारा (Irms) और वि. वा. बल व धारा के मध्य के कोण की कोज्या (cos ϕ) गुणनफल के तुल्य होती है ; अर्थात्
माना किसी प्रत्यावर्ती परिपथ में, वि. वा. बल (Erms) धारा (Irms) से ϕ कला कोण आगे है, जैसा की नीचे चित्र में दिखाया गया है :-
उपरोक्त चित्र में Irms को दो घटकों में विभाजित किया गया है :
Irms cos ϕ जो कि Erms के अनुदिश है व
Irms sin ϕ जो कि Erms के लम्बवत है
अब क्यूंकि Erms व Irms cos ϕ के मध्य कोण 0° है, अतः Irms cos ϕ के कारण एक पूर्ण चक्र में व्यय औसत शक्ति,
Pavg. = (Erms) × (Irms cos ϕ) × (cos 0°) = ErmsIrms cos ϕ
इसी प्रकार क्यूंकि Erms व Irms sin ϕ के मध्य कोण 90° है, अतः Irms sin ϕ के कारण एक पूर्ण चक्र में व्यय औसत शक्ति,
Pavg.‘ = (Erms) × (Irms sin ϕ) × (cos 90°) = 0
अतः धारा का घटक Irms sin ϕ, प्रत्यावर्ती परिपथ में विद्युत शक्ति का व्यय नहीं करता। इसी कारण से धारा के इस घटक को कार्यहीन धारा (Idle Current) अथवा वाटहीन धारा (Wattless Current) कहा जाता है।
उदाहरण 1.
NCERT Example 7.7
(a) विद्युत शक्ति के परिवहन के लिए प्रयुक्त होने वाले परिपथों में निम्न शक्ति गुणांक, संप्रेषण में अधिक ऊर्जा का क्षय होगा, निर्दिष्ट करता है। इसका कारण समझाइए।
(b) परिपथ का शक्ति गुणांक, प्रायः परिपथ में उपयुक्त मान के संधारित्र का उपयोग करके सुधारा जा सकता है। यह तथ्य समझाइए।
हल :
(a) चूँकि प्रत्यावर्ती परिपथ में औसत शक्ति, Pavg. = Erms Irms cos ϕ, अब यदि एक नियत वोल्टता (Erms) पर एक निश्चित शक्ति (Pavg.) की आपूर्ति करनी है तब निम्न शक्ति गुणांक (cos ϕ) होने पर हमें धारा का मान बढ़ाना पड़ेगा। परन्तु इससे संप्रेषण में अधिक शक्ति क्षय (I2R) होगा।
(b) माना किसी विद्युत परिपथ में धारा Irms वोल्टता Erms से ϕ कला कोण पीछे रहती है तो इस परिपथ का शक्ति गुणांक,
उपरोक्त चित्र के अनुसार धारा को दो घटकों Irms cos ϕ (शक्ति घटक, जो वोल्टता Erms के साथ कला में है) व Irms sin ϕ (वाटहीन घटक, जो वोल्टता Erms से 90° कला कोण पीछे है) में बांटा जा सकता है।
अब यदि हम शक्ति गुणांक का मान बढ़ाना चाहते हैं, तो हमें वाटहीन घटक (Irms sin ϕ) के विपरीत दिशा में धारा प्रवाहित करवानी होगी। क्यूंकि संधारित्र में धारा, वोल्टता से 90° कला कोण आगे रहती है, इसलिए एक उपयुक्त मान के संधारित्र का उपयोग करके I’ धारा से Irms sin ϕ को निरस्त किया जा सकता है और शक्ति गुणांक में सुधार किया जा सकता है।
उदाहरण 2.
NCERT Example 7.8
283 V शिखर वोल्टता एवं 50Hz आवृत्ति की एक ज्यावक्रीय वोल्टता एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ से जुड़ी है जिसमें R = 3Ω , L = 25.48 mH एवं C = 796 μF है। ज्ञात कीजिए (a) परिपथ की प्रतिबाधा; (b) स्रोत के सिरों के बीच लगी वोल्टता एवं परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा के बीच कला-अंतर; (c) परिपथ में होने वाला शक्ति-क्षय; एवं (d) शक्ति गुणांक।
हल :
(a) परिपथ की प्रतिबाधा (Z)
(b) वोल्टता एवं धारा के मध्य कलांतर,
अर्थात् धारा, वोल्टता से 90° कला कोण पीछे है।
(c) परिपथ में शक्ति-क्षय
(d) शक्ति गुणांक
उदाहरण 3.
NCERT Example 7.9
माना कि पूर्व उदाहरण में वर्णित स्रोत की आवृत्ति परिवर्तनशील है। (a) स्रोत की किस आवृत्ति पर अनुनाद होगा। (b) अनुनाद की अवस्था में प्रतिबाधा, धारा एवं क्षयित शक्ति की गणना कीजिए।
हल :
(a) अनुनादी आवृत्ति
(b) अनुनाद की स्थिति में प्रतिबाधा (Z) = प्रतिरोध (R) अतः
Z = R = 3Ω
अनुनाद की स्थिति में क्षयित शक्ति
यहाँ आप देख सकते हैं कि अनुनाद स्थिति में शक्ति क्षय उदाहरण 7.8 में हुए शक्ति क्षय से अधिक है।
उदाहरण 4.
NCERT Example 7.10
किसी हवाई अड्डे पर सुरक्षा कारणों से, किसी व्यक्ति को धातु-संसूचक के द्वार पथ से गुजारा जाता है। यदि उसके पास कोई धातु से बनी वस्तु है, तो धातु संसूचक से एक ध्वनि निकलने लगती है। यह संसूचक किस सिद्धान्त पर कार्य करता है ?
हल :
हवाई अड्डे पर धातु-संसूचक विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
यह इस प्रकार कार्य करता है :
(1). विद्युत चुम्बकीय तरंग का निर्माण : धातु-संसूचक में एक प्रेषक कुंडली (transmitter coil) होती है जो एक परिवर्ती विद्युत चुम्बकीय तरंग उत्पन्न करती है।
(2). भंवर धाराओं को प्रेरित करना : यदि कोई व्यक्ति धातु की वस्तु लेकर संसूचक के अंदर से जाता है, तो प्रेषक कुंडली द्वारा उत्पन्न परिवर्ती विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के कारण धातु की वस्तु में भंवर धाराएं प्रेरित होती हैं।
(3). द्वितीयक चुंबकीय क्षेत्र : भंवर धाराएं अपना स्वयं का द्वितीयक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं, जो प्रेषक कुंडली द्वारा उत्पन्न मूल क्षेत्र को प्रभावित करता है।
(4). संसूचन और अलार्म का बजना : धातु-संसूचकर में एक रिसीवर कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में इन परिवर्तनों को संसूचित करती है। परिवर्तित सिग्नल संसाधित (processed) होता है, और यदि धातु का पता चलता है, तो सिस्टम अलार्म उत्सर्जित करता है।
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