बेलनाकार संधारित्र
बेलनाकार संधारित्र :- बेलनाकार संधारित्र एक प्रकार का संधारित्र होता है जिसमें दो समाक्षीय बेलनाकार चालक होते हैं जिनके मध्य एक परावैद्युत पदार्थ (वायु या अन्य कुचालक पदार्थ) भरा होता है।
संरचना :-
आंतरिक बेलन : आंतरिक बेलन एक ठोस या खोखली बेलनाकार छड़ होती है।
बाह्य बेलन : बाह्य बेलन, आंतरिक बेलन के चारों ओर एक खोखला बेलनाकार कोष है जो भूसम्पर्कित होता है।
दोनों बेलनों के मध्य का स्थान एक परावैद्युत पदार्थ से भरा होता है, जो वायु, निर्वात या कोई अन्य कुचालक पदार्थ हो सकता है।
कार्य प्रणाली :-
माना आंतरिक व बाह्य बेलनों A व B की त्रिज्या क्रमशः r1 व r2 व लंबाई L है। आंतरिक बेलन A को +Q आवेश दिया जाता है जिससे बेलन B की आंतरिक सतह पर -Q आवेश व बाह्य सतह पर +Q आवेश प्रेरित होता है। अब क्यूंकि बेलन B की बाह्य सतह भुसम्पर्कित है, अतः +Q आवेश पृथ्वी में प्रवाहित हो जाता है।
विद्युत क्षेत्र रेखाएं बेलन A के बाह्य प्रष्ठ से बेलन B के आंतरिक प्रष्ठ पर अंत होती है, यहाँ विद्युत ऊर्जा बेलनों के मध्य भाग में संचित होती है। बेलन A के आंतरिक भाग में व बेलन B के बाह्य भाग में विद्युत क्षेत्र (व विद्युत क्षेत्र रेखाएं) शून्य है। बेलनों के मध्य भाग में विद्युत क्षेत्र एक समान होने के लिए हम यह मानकर चलते हैं की L >> (r1 और r2)
बेलनाकार संधारित्र की धारिता
रेखीय आवेश घनत्व,
बेलनों के मध्य विद्युत क्षेत्र,
बेलनों के मध्य विभवांतर,
अतः बेलनाकार संधारित्र की धारिता,
…..(1)
समीकरण (1) एक बेलनाकार संधारित्र की धारिता के लिए व्यंजक है।
यदि बेलनों के मध्य εr परावैद्युतांक वाले पदार्थ को भर दिया जाए, तब बेलनाकार संधारित्र की धारिता,
…..(2)