प्रेरक में धारा की वृद्धि और क्षय
प्रेरक में धारा की वृद्धि और क्षय :- माना एक प्रतिरोध R व एक प्रेरक L को ε विद्युत वाहक बल की एक बैटरी से मोर्स कुंजी K की सहायता से संयोजित किया गया है, जैसा नीचे चित्र में दिखाया गया है :-
(a) प्रेरक में धारा की वृद्धि
जैसे ही मोर्स कुंजी K को दबाया जाता है, प्रतिरोध R व प्रेरक L, बैटरी से संयोजित हो जाते हैं और R – L परिपथ में धारा वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है। स्व-प्रेरण के कारण प्रेरक L में एक विद्युत वाहक बल (e.m.f.) प्रेरित होता है और लेन्ज के नियमानुसार यह वि. वा. बल धारा वृद्धि का विरोध करता है।
यदि किसी समय परिपथ में विद्युत धारा का मान I हो व धारा में परिवर्तन की दर dI/dt हो, तब
प्रतिरोध R के सिरों पर विभवान्तर =
प्रेरक L के सिरों पर विभवान्तर =
अतः किसी समय t पर,
…..(1)
जिस समय धारा का मान अधिकतम होता है, धारा में परिवर्तन की दर शुन्य होती है, अर्थात होने पर, अतः समीकरण (1) में उस समय ε = I0R होगा। समीकरण (1) से,
दोनों ओर उचित सीमा में समाकलन करने पर,
…..(2)
जहाँ,
समीकरण (2) को प्रेरक में धारा वृद्धि की हेल्महोल्ट्ज़ समीकरण कहते हैं तथा यह समीकरण दर्शाती है कि प्रेरक में विद्युत धारा की वृद्धि चरघातांकी रूप से होती है।
समय नियतांक (Time Constant)
राशी को L-R परिपथ का समय नियतांक कहा जाता है क्यूंकि की विमा समय की है व किसी दिए गए L-R परिपथ के लिए इसका मान नियत होता है।
समीकरण (2) में रखने पर,
∴ I = 63.2 % I0
अतः L-R परिपथ का समय नियतांक वह समय होता है जिसमें परिपथ में धारा का मान, अधिकतम धारा का 63.2 % हो जाता है।
पुनः समीकरण (2) में I = I0 , के लिए
अर्थात् L-R परिपथ में धारा को अपने अधिकतम मान तक पहुंचने में अनंत समय लगता है। किन्तु वास्तव में समय नियतांक के लगभग 5 गुना समय में धारा अपने अधिकतम मान को प्राप्त करती है। निम्न आलेख L-R परिपथ में धारा वृद्धि को दर्शाता है :-
(b) प्रेरक में धारा क्षय
जैसे ही मोर्स कुंजी K को छोड़ा जाता है, बैटरी परिपथ से अलग हो जाती है व धारा क्षय प्रारम्भ हो जाता है।
यदि किसी समय t पर, परिपथ में धारा का मान I हो, तब क्यूंकि बैटरी को परिपथ से पृथक कर दिया गया है, अतः समीकरण (1) में ε = 0 रखने पर,
दोनों ओर उचित सीमा में समाकलन करने पर,
…..(3)
जहाँ,
समीकरण (3) को प्रेरक में धारा क्षय की हेल्महोल्ट्ज़ समीकरण कहते हैं।
समय नियतांक (Time Constant)
पूर्व चर्चा के अनुसार राशी को L-R परिपथ का समय नियतांक कहते हैं। समीकरण (3) में रखने पर,
∴ I = 36.8 % I0
अतः L-R परिपथ का समय नियतांक वह समय होता है जिसमें धारा क्षय के समय परिपथ में धारा का मान, अधिकतम धारा का 36.8 % रह जाता है।
पुनः समीकरण (3) में I = 0 , के लिए
अर्थात् L-R परिपथ में धारा क्षय के दौरान धारा का मान शुन्य होने में अनंत समय लगता है। निम्न आलेख L-R परिपथ में धारा क्षय को दर्शाता है :-
नोट :-
यदि समय नियतांक का मान कम है, तब समीकरण (2) से धारा को अपने अधिकतम मान (I0) तब पहुँचने में कम समय लगता है व समीकरण (3) से धारा को शून्य होने में भी कम समय लगेगा। इसी प्रकार यदि समय नियतांक का मान अधिक है तब धारा की वृद्धि और क्षय दोनों में ही आधिक समय लगेगा।
अतः L-R परिपथ का समय नियतांक () धारा वृद्धि और क्षय की दर का मापक है।
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