प्रत्यावर्ती धारा
प्रत्यावर्ती धारा :- अभी तक हमने पिछले अध्यायों में दिष्ट धारा परिपथों का अध्ययन किया जिनमें विद्युत वाहक बल के स्रोत के रूप में एक सेल अथवा बैटरी प्रयुक्त की जाती थी तथा विद्युत धारा I को ओम के नियम (V = IR) अनुसार केवल एक ओमीय प्रतिरोध R नियंत्रित करता था। ऐसे परिपथों में विद्युत धारा का परिमाण तथा दिशा समय के साथ नियत रहते हैं, अतः इसे दिष्ट धारा कहते हैं।
तथापि हमारे घरों एवं दफ्तरों में पाया जाने वाला मुख्य विद्युत प्रदाय (electric mains supply) एक ऐसी वोल्टता का स्रोत है जो समय के साथ ज्या फलन (sine function) की भाँति परिवर्तित होता है। इस प्रकार की वोल्टता को प्रत्यावर्ती वोल्टता (AC Voltage) तथा किसी विद्युत परिपथ में इसके द्वारा प्रवाहित धारा को प्रत्यावर्ती धारा (AC Current) कहते हैं।
आजकल सामान्यतः विद्युत ऊर्जा का उत्पादन तथा उपयोग प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही किया जाता है। इसके मुख्य दो कारण निम्न हैं :-
- प्रत्यावर्ती वोल्टता के परिमाण को सरलता से ट्रांसफार्मर द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है, तथा
- प्रत्यावर्ती विद्युत ऊर्जा को सरलता से दूरस्थ स्थानों तक निम्नतम ऊर्जा क्षय द्वारा भेजा जा सकता है।
(1) दिष्ट धारा तथा वोल्टता (Direct Current and voltage)
वह विद्युत धारा/वोल्टता जिसका परिमाण व दिशा समय के साथ परिवर्तित ना हो, दिष्ट धारा/वोल्टता कहलाती है।
दिष्ट धारा तथा वोल्टता के मध्य आलेख :-
चित्र (a) में दिष्ट धारा का परिमाण नियत है तथा चित्र (b) व (c) में असमान दिष्ट धारा दर्शाई गई है।
असमान दिष्ट धारा :- ऐसी धारा जिसमें समय के साथ दिशा तो अपरिवर्तित रहे किंतु धारा का परिमाण परिवर्तित होता रहे, असमान दिष्ट धारा कहलाती है। इसे उच्चावन वाली दिष्ट धारा भी कहते हैं।
नोट :-
- दिष्ट धारा का स्रोत बैटरी या सेल है।
- दिष्ट धारा/वोल्टता की आवृत्ति शून्य ( f = 0) व आवर्तकाल अनंत [T = (1/f ) = ∞] होता है।
- दिष्ट धारा का मापन चल कुंडली धारामापी के सिद्धांत पर आधारित अमीटर के द्वारा किया जाता है।
(2) प्रत्यावर्ती धारा तथा वोल्टता (Alternating Current and voltage)
वह वोल्टता या विद्युत धारा जिसका परिमाण और दिशा समय के साथ आवर्ती रूप (Periodically) से परिवर्तित होते हैं, प्रत्यावर्ती धारा या प्रत्यावर्ती वोल्टता कहलाती है। इसे ज्या (sine) या कोज्या (cosine) वक्र द्वारा प्रदर्शित कर सकते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा का आयाम (Amplitude of AC)
किसी एक दिशा में (धनात्मक या ऋणात्मक) धारा के अधिकतम मान को आयाम कहते है। इसे I0 से प्रदर्शित करते हैं।
शिखर से शिखर मान = 2I0
आवर्तकाल (Time Period/Periodic Time)
प्रत्यावर्ती धारा को परिवर्तन का एक चक्र पूर्ण करने में जितना समय लगता है उसे प्रत्यावर्ती धारा का आवर्तकाल कहते हैं।
आवृत्ति (Frequency)
1 सेकण्ड में प्रत्यावर्ती धारा द्वारा पूर्ण किये गये चक्रों की संख्याओं को आवृत्ति कहते हैं। आवृत्ति को ν (न्यू) से प्रदर्शित करते हैं।
मात्रक – चक्र/सेकंड या हर्ट्ज (Hz)
AC परिपथों में प्रतिरोध (R) के साथ दो अतिरिक्त अवयव, प्रेरक (L) व संधारित्र (C) प्रयुक्त होते हैं, अतः AC परिपथों में धारा को तीन अवयव R, L व C नियंत्रित करते हैं।
किसी शुद्ध प्रेरक L के सिरों के मध्य विभावांतर V,
…..(1)
जहाँ विद्युत धारा I के परिवर्तन की दर है।
इसी प्रकार किसी आदर्श संधारित्र C के लिए,
अतः संधारित्र से प्रवाहित विद्युत धारा I,
…..(2)
जहाँ विद्युत विभव V के परिवर्तन की दर है।
समीकरण (1) के अनुसार एक प्रेरक विभावांतर को तब प्रभावित करता है जब विद्युत धारा I परिवर्तित होती है व समीकरण (2) के अनुसार एक संधारित्र विद्युत धारा को तब प्रभावित करता है जब विभावांतर V में समय के साथ परिवर्तन होता है। अतः AC परिपथों में V व I समय पर निर्भर करते हैं।
“क्षणिक धारा” (Transient Current)
यदि किसी विद्युत परिपथ, जिसमें केवल प्रतिरोध R संयोजित हो, को चालू अथवा बंद किया जाता है, तो विद्युत धारा अपना अधिकतम मान, बिना समय पश्चात (तुरंत) के प्राप्त कर लेती है। किंतु यदि विद्युत परिपथ में प्रेरक L अथवा संधारित्र C संयोजित हों तब प्रेरित वि. वा. बल के कारण, विद्युत धारा को अपना अधिकतम मान प्राप्त करने में और क्षय होने में कुछ समय लगता है।
अतः क्षणिक धारा उस अस्थायी धारा को कहते हैं जो समय के साथ परिवर्तित होती विद्युत धारा के मार्ग में प्रेरक के प्रतिरोध या विभावांतर में परिवर्तन के कारण संधारित्र के प्रतिरोध के कारण उत्पन्न होती है, और यह समय के साथ कम हो जाती है क्योंकि परिपथ अपनी स्थिर अवस्था तक पहुंच जाता है।
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