प्रतिरोध | प्रतिरोध किसे कहते हैं ?
प्रतिरोध | प्रतिरोध किसे कहते हैं ? :- वर्ष 1828 में जी. एस. ओम ने एक चालक में प्रवाहित विद्युत धारा (I) और उसके सिरों पर आरोपित विभवान्तर (V) के बारे में एक बुनियादी नियम की खोज की, जिसे ओम का नियम कहा जाता है। ओम के नियम के अनुसार :-
अथवा
जहाँ R एक समानुपातिक स्थिरांक है जिसे चालक का प्रतिरोध कहा जाता है।
प्रतिरोध का S.I. मात्रक
Volt/Ampere या Ohm(Ω)
1 ओम की परिभाषा :- यदि किसी चालक के सिरों के बीच एक वोल्ट विभवान्तर लगाने पर उसमें से एक एम्पीयर धारा प्रवाहित होती है तो चालक का प्रतिरोध एक ओम कहलाता है।
1 Ω = 1 V/1 A
वे कारक जिन पर किसी चालक का प्रतिरोध निर्भर करता है :-
किसी चालक का प्रतिरोध निम्न कारकों पर निर्भर करता है :-
- चालक की प्रकृति (चालक के पदार्थ की प्रकृति)
- तापमान और
- चालक के आयाम (अर्थात् लंबाई और चौड़ाई पर)
आइए हम चालक की विमाओं पर प्रतिरोध की निर्भरता को समझते हैं :-
l लंबाई और A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल की आयताकार सिल्ली के रूप के एक चालक पर विचार करें।
माना चालक के सिरों पर V विभवांतर आरोपित करने पर इसमें I धारा प्रवाहित होती है।
आइए हम ऐसे दो चालकों को एक साथ सटा कर रखें, ताकि संयोजन की लंबाई 2l हो।
यदि V पहले चालक के सिरों के मध्य विभवान्तर हो, तो दूसरे चालक के सिरों के मध्य भी V विभवान्तर होगा, क्योंकि दोनों चालक समान हैं।
संयोजन के सिरों के मध्य विभवान्तर = 2V
संयोजन से बहने वाली धारा वही होगी जो किसी एक चालक से प्रवाहित धारा है = I
संयोजन का प्रतिरोध R’ = (2V)/I = 2R
इस प्रकार, किसी चालक की लंबाई को दोगुना करने से उसका प्रतिरोध भी दोगुना हो जाता है। इसलिए, प्रतिरोध चालक की लंबाई के सीधे आनुपातिक है, अर्थात,
R ∝ l …..(1)
आइए अब कल्पना करें कि चालक को लंबाई के अनुदिश काटकर दो भागों में विभाजित किया गया है।
यहाँ चालक को l लंबाई के दो समान चालकों के संयोजन के रूप में माना जा सकता है, जिनमें प्रत्येक का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल A/2 है।
चूँकि I पूरे चालक के अनुप्रस्थ काट A से प्रवाहित धारा है इसलिए प्रत्येक अर्ध-क्षेत्रफल के चालक से प्रवाहित होने वाली धारा = I/2
अर्ध-क्षेत्रफल के चालक के सिरों पर विभवांतर = V
अर्ध-क्षेत्रफल के चालक का प्रतिरोध R” = V/(I/2) = 2(V/I) = 2R
इस प्रकार किसी चालक के अनुप्रस्थ काट को आधा करने से प्रतिरोध दोगुना हो जाता है। इसलिए, प्रतिरोध R, अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात,
R ∝ 1/A …..(2)
समीकरण (1) व (2) से,
…..(3)
जहाँ ρ एक समानुपाती नियतांक है और यह केवल चालक के पदार्थ पर निर्भर करता है न कि उसकी विमाओं पर। इस नियतांक को प्रतिरोधकता अथवा विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं।
अब
V = IR
यहाँ,
V/l = E (विद्युत क्षेत्र की तीव्रता) और I/A = J(धारा घनत्व)
…..(4)
अथवा
…..(5)
जहाँ σ = (1/ρ) को चालकता कहते हैं।
समीकरण (5) को ओम के नियम का सूक्ष्म रूप कहते हैं।
चालक के प्रतिरोध की तापमान पर निर्भरता
चालकों का प्रतिरोध तापमान पर निर्भर करता है यदि किसी चालक का प्रतिरोध संदर्भ तापमान(अर्थात कमरे के तापमान 293K या 20ºC) पर R0 हो तब T oC पर चालक का प्रतिरोध Rt निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है :-
यहाँ, α = प्रतिरोध ताप गुणांक व ΔT = तापमान में वृद्धि है।
α का मान धातुओं के लिए धनात्मक तथा अर्थचालकों और कुचालकों के लिए ऋणात्मक होता है।
किसी चालक का प्रतिरोध ताप में कमी के साथ रेखीय रूप से घटता है और एक विशिष्ट ताप पर शून्य हो जाता है। यह ताप क्रान्तिक ताप कहलाता है। इस ताप पर चालक अतिचालक की भांति व्यवहार करता है।
नोट :-
- यदि किसी तार को इस प्रकार खींचे की उसकी लम्बाई, वास्तविक लम्बाई की n गुनी हो जाए तो उसका नया प्रतिरोध n2 गुना हो जाता है।
- यदि किसी तार को इस प्रकार खींचे की उसकी त्रिज्या, वास्तविक त्रिज्या से (1/n) गुना हो जाऐ तो प्रतिरोध n4 गुना बढ़ जाऐगा। इसी प्रकार त्रिज्या n गुना बढ़ जाऐ तो प्रतिरोध n4 गुना घट जायेगा।
- किसी मिश्रधातु की प्रतिरोधकता, उसकी धातु से ज्यादा होती है।
- मिश्रधातु का ताप गुणांक उसकी शुद्ध धातु से कम होता है।
- अधिकतर अधातुओं का प्रतिरोध ताप बढने के साथ घटता है। (उदाहरण कार्बन)
- किसी कुचालक की प्रतिरोधकता धातु से 1022 गुना अधिक होती है। (उदाहरण एम्बर)
- कार्बन (ग्रेफाइट), अर्धचालकों, कुचालकों और विद्युत अपघट्यों का ताप गुणांक (α) ऋणात्मक होता है।
उदाहरण 1.
चित्र में L लंबाई व वृत्तीय अनुप्रस्थ काट का एक चालक दर्शाया गया है। चालक के अनुप्रस्थ काट की त्रिज्या a से b तक रेखिय रूप से परिवर्तित होती है। यदि पदार्थ की प्रतिरोधकता ρ है, तब चालक का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
हल :
आइए हम चालक के बाएं छोर से x दूरी पर dx मोटाई की एक छोटी पट्टी पर विचार करें।
dx मोटाई की छोटी पट्टी का प्रतिरोध,
…..(1)
y के सापेक्ष अवकलन करने पर,
समीकरण (1) में dx के मान का उपयोग करते हुए,
दोनों और समाकलन करने पर,
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