नाभिकीय बल किसे कहते हैं | नाभिकीय बल क्या है
नाभिकीय बल किसे कहते हैं | नाभिकीय बल क्या है :- पिछले लेख प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा में हमने देखा है कि औसत द्रव्यमान वाले नाभिकों के लिए प्रति न्यूक्लियॉन बंधन ऊर्जा लगभग 8 MeV है, जोकि बहुत अधिक है। इसलिए वैज्ञानिकों के मन में यह प्रश्न आया कि ऐसा कौन सा बल है जो इतने छोटे आकार (~ 10–15 m) के नाभिक के भीतर सभी न्यूक्लियॉनों को आपस में बांधे रखता है।
यह बल गुरुत्वाकर्षण बल नहीं हो सकता, क्योंकि गणना से पता चला कि दो प्रोटॉनों के मध्य कूलाम प्रतिकर्षण बल उनके मध्य के आकर्षक गुरुत्वाकर्षण बल से 1036 गुना अधिक है। अतः नाभिक में बिल्कुल अलग प्रकृति का कोई शक्तिशाली आकर्षण बल होना।
अंत में नाभिक की स्थिरता के लिए, एक जापानी भौतिक विज्ञानी युकावा (Yukawa) द्वारा नाभिकीय बल नामक एक नए बल की परिकल्पना की गई। इस नाभिकीय बल को एक प्रबल आकर्षण बल माना गया और इसका परिमाण कूलाम प्रतिकर्षण बल से अधिक है। युकावा ने भविष्यवाणी की कि नाभिकीय बल न्यूक्लियॉनों के मध्य π-मेसॉन (π-mesons) नामक कणों के आदान-प्रदान के कारण उत्पन्न होते हैं।
नाभिकीय बल किसे कहते हैं – परिभाषा
नाभिकीय बल आकर्षण प्रकृति का एक शक्तिशाली बल हैं जो प्रोटॉनों के मध्य लगने वाले कुलाम प्रतिकर्षण बलों से अधिक प्रभावी होकर प्रोटाॅनों एवं न्यूट्राॅनों दोनों को नाभिक के भीतर सूक्ष्म आयतन में बाँधे रखता है।
नाभिकीय बलों के गुण
(नाभिकीय बल किसे कहते हैं)
- नाभिकीय बल आवेश पर निर्भर नहीं करते :- दो न्यूक्लियानों के मध्य नाभिकीय बल का मान इस बात पर निर्भर नहीं करता कि उनमें से किसी पर आवेश है या नहीं। दूसरे शब्दों में, प्रोटॉन-प्रोटॉन (p–p), प्रोटॉन-न्यूट्रॉन (p–n) और न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन (n–n) के मध्य नाभिकीय बल समान होता है।
- नाभिकीय बल प्रकृति में सबसे शक्तिशाली बल है :- नाभिकीय बल का परिमाण कुलाम प्रतिकर्षण बल से 100 गुना और गुरुत्वाकर्षण बल से 1038 गुना होता है। इसलिए नाभिकीय बल प्रकृति में सबसे शक्तिशाली बल हैं।
- नाभिकीय बल अल्प दूरी के बल हैं :- दो न्यूक्लियॉनों के मध्य नाभिकीय बल तभी लगता है जब न्यूक्लियॉनों के मध्य दूरी, नाभिक के आकार (~ 10-15 m) के बराबर होती है। जैसे ही दो न्यूक्लियॉन के मध्य की दूरी 10-15 m से अधिक हो जाती है, ये बल कार्य करना बंद कर देते हैं। इसके अलावा, एक न्यूक्लियॉन केवल अपने पड़ोसी न्यूक्लियॉनों पर ही नाभिकीय बल आरोपित कर सकता है, जैसे ठोस रूप में एक परमाणु केवल आसपास के परमाणुओं के साथ ही आबंध बनाता है। इस प्रकार, ये बल कम परास के बल हैं और कुछ फर्मी की दूरी तक प्रभावी होते हैं।
- नाभिकीय बल एक संतृप्त बल है :- एक न्यूक्लियॉन केवल अपने निकटतम पड़ोसी न्यूक्लियॉनों को ही नाभिकीय बल से आकर्षित कर सकता है और अन्य न्यूक्लियॉनों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार, नाभिकीय बल संतृप्त बल हैं।
- नाभिकीय बल केंद्रीय बल नहीं है :- दो न्यूक्लियॉनों के मध्य नाभिकीय बल उनके केंद्रों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य नहीं करता है और इसलिए यह केंद्रीय बल नहीं है।
- नाभिकीय बल एक विनिमय बल है :- नाभिकीय बल न्यूक्लियॉनों के मध्य π-मेसॉन के आदान-प्रदान के कारण होते हैं, इसलिए इन्हें विनिमय बल कहा जाता है।
- नाभिकीय बल स्पिन पर निर्भर करते हैं :- यह देखा गया है कि समानांतर स्पिन वाले न्यूक्लियॉनों के मध्य नाभिकीय बल, प्रति-समानांतर स्पिन वाले न्यूक्लियॉनों के मध्य के बल से अधिक होता है। इस प्रकार ये स्पिन पर निर्भर हैं।
- नाभिकीय बल व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन नहीं करते हैं :- कूलाम के नियम या न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के विपरीत नाभिकीय बल, व्युत्क्रम वर्ग नियम का पालन नहीं करते और इनका कोई सरल गणितीय रूप नहीं है।
- नाभिकीय बल में प्रतिकर्षण बल का एक छोटा घटक होता है :- न्यूक्लियॉनों के मध्य की दूरी (r) के साथ नाभिकीय बल के परिवर्तन को नीचे दिए गए चित्र में दिखाया गया है :
उपरोक्त आलेख से हम देखते हैं कि :-
- जब न्यूक्लियॉनों के मध्य की दूरी 10 फर्मी से अधिक हो तो नाभिकीय बल नगण्य होते हैं।
- जब न्यूक्लियानों को निकट लाया जाता है तो दूरी कम होने के साथ नाभिकीय बल का मान तेजी से बढ़ता है।
- जब न्यूक्लियानों के मध्य की दूरी 0.8 फर्मी से कम हो जाती है, तो नाभिकीय बल अत्यधिक प्रतिकर्षण प्रकृति का हो जाता है। अतः नाभिकीय बल में प्रतिकर्षण बल का एक छोटा सा घटक होता है। दो न्यूक्लियानों के मध्य दूरी (r) के साथ स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तन को नीचे आलेख में दिखाया गया है :-
उपरोक्त आलेख में :-
- r = 0.8 फर्मी पर, नाभिकीय बल शून्य है और स्थितिज ऊर्जा(P.E.) न्यूनतम है।
- r > 0.8 फर्मी के लिए, नाभिकीय बल ऋणात्मक (आकर्षक) है और ऋणात्मक स्थितिज ऊर्जा घटती जाती है।
- r < 0.8 फर्मी के लिए, नाभिकीय बल धनात्मक (प्रतिकर्षक) है और ऋणात्मक स्थितिज ऊर्जा घटकर शून्य हो जाती है और फिर बढ़ती (धनात्मक) है।