धातु गुहा में आवेश प्रेरण
धातु गुहा में आवेश प्रेरण :- हम जानते हैं कि स्थिर आवेश किसी चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र उत्पन्न नहीं कर सकते। इसलिए, कोई भी विद्युत क्षेत्र रेखा किसी चालक में प्रवेश नहीं कर सकती।
मान लीजिए कि एक बिंदु आवेश +q को किसी धातु के भीतर स्थित गोलाकार गुहा के केंद्र पर रखा गया है। आवेश +q द्वारा उत्पन्न कुल विद्युत फ्लक्स का अंत गुहा की भीतरी सतह पर प्रेरित आवेश –q पर होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी विद्युत क्षेत्र रेखा धातु में प्रवेश न करे। अतः बिंदु आवेश +q से प्रारंभ होने वाला संपूर्ण विद्युत फ्लक्स गुहा की भीतरी सतह पर स्थित प्रेरित आवेश –q पर समाप्त हो जाता है।
किसी भी बिंदु A पर, जो धातु के भीतर स्थित है, कुल विद्युत क्षेत्र शून्य होता है। इसका अर्थ यह है कि बिंदु आवेश +q के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र को गुहा की भीतरी सतह पर स्थित प्रेरित आवेशों द्वारा पूरी तरह से निरस्त कर दिया जाता है। चालक की बाह्य सतह पर +q आवेश प्रेरित होता है, जो स्वयं को इस प्रकार वितरित कर लेता है कि चालक के भीतर कहीं भी कोई विद्युत क्षेत्र उत्पन्न नहीं होता।
उपरोक्त विश्लेषण से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यदि किसी धातु पिंड की गुहा में कोई आवेश रखा जाए, तो :
(i). गुहा की भीतरी सतह पर समान परिमाण व विपरीत प्रकृती का आवेश प्रेरित हो जाता है।
(ii). धातु की बाह्य सतह पर भी समान परिमाण व प्रकृती का आवेश प्रेरित होता है, जिसका पृष्ठीय आवेश घनता, पिंड की वक्रता त्रिज्या के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
(iii). यदि गुहा के भीतर स्थित आवेश को विस्थापित किया जाए, तो गुहा की भीतरी सतह पर प्रेरित आवेश का वितरण इस प्रकार समायोजित हो जाता है कि उसका आवेश केंद्र प्रभावी रूप से बिंदु आवेश का अनुसरण करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बाह्य क्षेत्र (धातु में) में विद्युत क्षेत्र शून्य बना रहे।
(iv). जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, पिंड के भीतर बिंदु आवेश की गति का प्रभाव चालक की बाह्य सतह पर स्थित आवेश वितरण पर नहीं पड़ता।
(v). यदि कोई अन्य आवेश चालक की बाह्य सतह पर रखा जाए, तो उसका प्रभाव केवल बाह्य सतह के आवेश वितरण पर पड़ेगा, न कि गुहा के भीतर के वितरण पर, जैसा कि नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है।
धातु गुहा में आवेश प्रेरण की स्थिति में
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता और विद्युत विभव का निर्धारण
(a). दो संकेन्द्रीय गोलाकार धात्विक कोष, जिनमें एक आवेशित कण छोटे कोष के भीतर स्थित है।
मान लीजिए कि दो संकेन्द्रीय धात्विक कोष हैं जिनकी त्रिज्या क्रमशः R1 और R2 (R1<R2) हैं। छोटे कोष के भीतर, केंद्र से r दूरी पर एक बिंदु आवेश +q रखा गया है।
(1). कोषों के केंद्र पर
निकाय के कारण केंद्र पर विद्युत विभव :
निकाय के कारण केंद्र पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (यहाँ केवल बिंदु आवेश +q का योगदान होगा) :
(2). वाह्य कोष के बाहर किसी बिंदु पर
यदि हम केंद्र से r दूरी पर, कोषों के बाहर, विद्युत क्षेत्र की तीव्रता और विद्युत विभव ज्ञात करें, तो वे केवल बाह्य कोष पर प्रेरित आवेश के कारण होंगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि छोटे कोष की भीतरी सतह पर प्रेरित आवेश उसके भीतर स्थित बिंदु आवेश के प्रभाव को निरस्त कर देता है।
निकाय के कारण केंद्र से r दूरी पर बाह्य कोष के बाहर किसी बिंदु पर विद्युत विभव :
निकाय के कारण केंद्र से r दूरी पर बाह्य कोष के बाहर किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
(b). एक चालक जिसमें गोलाकार गुहा हो और उसकी बाह्य सतह को आवेश दिया गया हो।
जब किसी चालक को आवेश दिया जाता है, तो विद्युत स्थैतिक संतुलन (electrostatic equilibrium) की स्थिति में वह सदैव चालक की बाह्य सतह पर ही रहता है। आइए तीन बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E और विद्युत विभव V के मान ज्ञात करें :
- गुहा के भीतर
- धातु के भीतर
- चालक के बाहर
(1). गुहा के भीतर ( r < R1 )
निकाय के कारण केंद्र पर विद्युत विभव :
केंद्र पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
क्योंकि गुहा के भीतर कोई आवेश स्थित नहीं है।
(2). धातु के भीतर ( R1 < r )
विद्युत विभव :
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
क्योंकि r त्रिज्या वाले गोले के भीतर कोई आवेश स्थित नहीं है ( R1 < r ) ।
(3). चालक के बाहर ( r > R2 )
विद्युत विभव :
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
(c). एक चालक जिसमें गोलाकार गुहा हो और उसके भीतर एक आवेश स्थित हो।
अब उस स्थिति पर विचार करें जिसमें आवेश +q को गुहा के केंद्र पर रखा गया है। परिणामस्वरूप, गुहा की भीतरी सतह पर –q आवेश प्रेरित होता है, और चालक की बाह्य सतह पर समान परिमाण का +q आवेश प्रेरित होता है।
आइए तीन बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E और विद्युत विभव V के मान ज्ञात करें :
- गुहा के भीतर
- धातु के भीतर
- चालक के बाहर
(1). गुहा के भीतर ( r < R1 )
गुहा के भीतर केंद्र से r दूरी पर विद्युत विभव :
गुहा के भीतर केंद्र से r दूरी पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
(2). धातु के भीतर ( R1 < r )
केंद्र से r दूरी पर विद्युत विभव :
केंद्र से r दूरी पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :
ऐसा इसलिए है क्योंकि चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है।
(3). चालक के बाहर ( r > R2 )
चालक के बाहर केंद्र से r दूरी पर विद्युत विभव :
चालक के बाहर केंद्र से r दूरी पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता :