चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ :- जिस प्रकार किसी विद्युत् आवेश के चारों ओर के क्षेत्र को चित्रात्मक रूप से प्रदर्शित करने के लिए काल्पनिक विद्युत् क्षेत्र रेखाएँ बनाई जाती हैं, ठीक उसी प्रकार किसी चुम्बक के चारों ओर के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रदर्शित करने के लिए काल्पनिक चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऐं होती हैं।
छड चुम्बक के चारों ओर लौह रेतन(Iron filings) के बने पैटर्नों के आधार पर हम चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींच सकते हैं। चुम्बकीय रेखाऐं खींचने के लिए हम चुम्बकीय द्विध्रुव(छोटी कम्पास सुई) काम में लेते हैं।
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण
(चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ)
1. चुम्बकीय क्षेत्र रेखा के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा, उस बिन्दु पर परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है ।
उपरोक्त चुम्बकीय क्षेत्र रेखा के बिंदु P पर लाल वर्ण से खींची गई स्पर्श रेखा, बिंदु P चुम्बकीय क्षेत्र को दिशा व परिमाण दोनों में व्यक्त करती है।
2. दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाऐं कभी भी एक दूसर को प्रतिछेद नहीं करतीं, क्योंकि यदि ये प्रतिछेद करें तब काटन बिंदु पर दो स्पर्श रेखाएँ खींची जा सकती हैं जो एक ही बिंदु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाओं को प्रदर्शित करेंगी। इसका अर्थ यह है कि काटन बिंदु पर यदि कोई कम्पास सुई रखी जाए, तब वह दो दिशाओं की और इशारा करे और यह संभव नहीं है।
3. किसी छड चुंबक अथवा धरावाही परिनालिका की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ सदैव संतत बंद लूप बनाती हैं । यह वैद्युत-द्विध्रुव की विद्युत्-क्षेत्र रेखाओं जैसी नहीं हैं जो धनावेश से प्रारम्भ होकर ऋणावेश पर अंत होती हैं अथवा धनावेश से प्रारम्भ होकर अनंत की ओर चली जाती हैं अथवा अनंत से प्रारम्भ होकर ऋणावेश पर अंत होती हैं।
4. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ जितनी सघन होती हैं, उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र उतना ही अधिक प्रबल होता है । चुम्बकीय क्षेत्र के लंबवत रखे तल के प्रति एकांक क्षेत्रफल से जितनी अधिक क्षेत्र रेखाएँ पारित होती हैं, उस स्थान पर चुंबकीय क्षेत्र उतना ही अधिक प्रबल होता है। उपरोक्त चित्र में लूप L1 के निकट चुंबकीय क्षेत्र लूप L2 की तुलना में अधिक प्रबल है।
5. चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक दुसरे पर सदैव पार्श्व दाब आरोपित करती हैं जिससे सदैव दो रेखाओं के बीच प्रतिकर्षण होता है।