किरण प्रकाशिकी
प्रकाश एक विद्युत चुम्बकीय तरंग (तरंगदैर्ध्य :- लगभग 400 nm से 750 nm) है जो निर्वात में अत्यंत तीव्र चाल, c = 2.99792458 × 108 ms-1 (लगभग 3 × 108 ms-1) से सीधी रेखा में गमन करता है।
प्रकाश जिस सीधी रेखा में गमन करता है उसे किरण कहा जाता है, और किरणों का एक बंडल प्रकाश पुंज कहलाता है।
प्रकाशिकी :-
भौतिकी की वह शाखा जिसमें प्रकाश की प्रकृति, गुणधर्म, स्रोत और प्रभाव का अध्ययन किया जाता है, प्रकाशिकी कहलाती है।
प्रकाशिकी की दो शाखाएं हैं :-
(1) किरण प्रकाशिकी अथवा ज्यामितीय प्रकाशिकी (Ray Optics or Geometrical Optics)
(2) तरंग प्रकाशिकी अथवा भौतिक प्रकाशिकी (Wave Optics or Physical Optics)
(1) किरण प्रकाशिकी, प्रकाशिकी का वह भाग है जो प्रकाश को ‘किरण’ जैसा मानकर उसकी गति का अध्ययन किया जाता है। किरण प्रकाशिकी की मान्यता के अनुसार जब तक समांगी माध्यम में प्रकाश गति करता है तब तक उसका मार्ग सीधी रेखा में होता है। जहाँ पर दो माध्यम मिलते हैं, वहाँ प्रकाश किरणे मुड़ जाती है।
ज्यामितीय प्रकाशिकी के अन्तर्गत प्रकाश के विवर्तन और व्यतिकरण की व्याख्या नहीं की जा सकती क्यूंकि ज्यामितीय प्रकाशिकी के द्वारा परिणाम तब तक शुद्ध आते हैं जब तक वस्तुओं का आकार प्रकाश की तरंगदैर्घ्य की तुलना में काफी बड़ा हो।
(2) तरंग प्रकाशिकी, प्रकाशिकी की वह शाखा है जो व्यतिकरण, विवर्तन, ध्रुवण आदि परिघटनाओं का अध्ययन करती है जिनके लिये ज्यामितीय प्रकाशिकी सही परिणाम नहीं देती। तथा यह प्रकाश के तरंग स्वरूप को बताती है।
प्रकाश का परावर्तन :-
जब कोई प्रकाश की किरण किसी एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती है तो परावर्तक पृष्ठ से टकराकर वापस उसी माध्यम में लौट जाती है। इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते है।
प्रकाश के परावर्तन में प्रकाश की चाल, आव्रति और तरंगदैर्ध्य अपरिवर्तित रहती है, किन्तु तीव्रता घटती है (क्यूंकि परावर्तन के समय प्रकाश का कुछ भाग परावर्तक सतह द्वारा अवशोषित किया जाता है)।
परावर्तन के नियम :-
1. आपतित किरण,परावर्तित किरण,अभिलंब तीनों एक ही तल में होते हैं।
2. आपतन कोण(i) तथा परावर्तन कोण(r) दोनों बराबर होते है।
दर्पण:-
किसी पारदर्शी पदार्थ के एक और पोलिश करने पर निर्मित रचना दर्पण कहलाती है।
दर्पण के प्रकार :-
दर्पण मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं :-
- समतल दर्पण (plain mirror)
- गोलीय दर्पण (spherical mirror) :- (1) उत्तल दर्पण (convex mirror) (2)अवतल दर्पण (concave mirror)
- परवलीय दर्पण (parabolic mirror)
दर्पण संबंधी शब्दावली :-
(1) ध्रुव / शीर्ष (P) :- ध्रुव गोलीय दर्पण का मध्य बिन्दु होता है ।
(2) वक्रता केंद्र (C) :- वक्रता केंद्र उस गोले का केंद्र है जिसका गोलाकार दर्पण एक भाग है।
(3) मुख्य अक्ष :- मुख्य अक्ष, गोलाकार दर्पण के ध्रुव और वक्रता केंद्र से गुजरने वाली एक काल्पनिक रेखा है।
(4) मुख्य फोकस :- मुख्य फोकस, मुख्य अक्ष पर एक बिंदु है, जहां प्रकाश की किरण, मुख्य अक्ष के समानांतर, परावर्तन के बाद, वास्तव में मिलती है (अवतल दर्पण) या मिलती हुई प्रतीत (उत्तल दर्पण) होती है।
(5) फोकल लंबाई :- फोकल लंबाई, ध्रुव और मुख्य फोकस के बीच की रैखिक दूरी है।
(6) वक्रता त्रिज्या :- वक्रता त्रिज्या, ध्रुव और वक्रता केंद्र के बीच की रैखिक दूरी है।
(7) द्वारक :- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के व्यास को इसका द्वारक (चित्र में aa‘ व bb‘) कहते हैं।
(8) फोकस तल :- फोकस से गुजरने वाला तथा मुख्य अक्ष के लम्बवत् तल।
(9) उपाक्षीय किरणें(Paraxial Rays) :- यह किरणें आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब के साथ अल्प कोण बनाती है तथा इसलिए मुख्य अक्ष के समीप होती है।
(10) पराक्षीय किरणें(Marginal rays) :- इन किरणोें का आपतन कोण वृहद होता है।
दर्पण के लिए कार्तीय चिन्ह परिपाटी :-
गोलीय दर्पणों द्वारा परावर्तन और गोलाकार लेंस द्वारा अपवर्तन के सूत्र प्राप्त करने के लिए हमें एक चिन्ह परिपाटी को अपनाना होगा।
हम कार्तीय चिह्न परिपाटी का प्रयोग करेंगे किसके अनुसार, सभी दूरियों का मापन दर्पण के ध्रुव या लेंस के प्रकाशिक केंद्र से किया जाता है।
कार्तीय चिह्न परिपाटी के अनुसार :-
- ऊपर की ओर (X-अक्ष के लम्बवत) मापी गई ऊँचाइयाँ धनात्मक ली जाती हैं।
- नीचे की ओर (X-अक्ष के लम्बवत) मापी गई दूरियां ऋणात्मक ली जाती हैं।
- आपतित किरण की दिशा में मापी गई दूरियाँ धनात्मक ली जाती हैं और
- आपतित किरण की विपरीत दिशा में मापी गई दूरियाँ ऋणात्मक ली जाती हैं।
नोट :- अवतल दर्पण की फोकस दूरी व वक्रता त्रिज्या ऋणात्मक, उत्तल दर्पण की फोकस दूरी व वक्रता त्रिज्या धनात्मक होती है और समतल दर्पण की फोकस दूरी व वक्रता त्रिज्या अनंत होती है।
दर्पण से प्रतिबिम्ब रचना के नियम :-
निम्न चार किरणों में से कोई भी दो किरणे दर्पण से परावर्तन के पश्चात जिस बिंदु पर मिलती है अथवा मिलती हुई प्रतीत होती हैं, वहां प्रतिबिम्ब का निर्माण होता है। किरणे वास्तव में मिलने पर वास्तविक प्रतिबिम्ब का निर्माण होता है जो कि हमेशा उल्टा होता है और यदि किरणे केवल मिलती हुई प्रतीत हों तो आभासी(काल्पनिक) प्रतिबिम्ब बनता है जो की हमेशा सीधा होता है।
(1) मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित किरण :-
जो प्रकाश की किरण मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती है, वह दर्पण से परावर्तन के पश्चात फोकस से गुजरती है(अवतल दर्पण) अथवा गुजरती हुई प्रतीत होति है(उत्तल दर्पण)।
(2) फोकस से गुजरने वाली किरण :-
जो प्रकाश की किरण दर्पण के फोकस से गुजरती है(अवतल दर्पण) अथवा गुजरती हुई प्रतीत होती है(उत्तल दर्पण), वह दर्पण से परावर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है।
(3) वक्रता केंद्र से गुजरने वाली किरण :-
जो प्रकाश की किरण दर्पण के वक्रता केंद्र से होकर गुजरती है (अवतल दर्पण) अथवा गुजरती हुई प्रतीत होती है(उत्तल दर्पण), दर्पण से परावर्तन के पश्चात आपतन पथ का अनुसरण करते हुए वापस लोट जाती है।
(4) ध्रुव पर आपतित किरण :-
जो प्रकाश की किरण दर्पण के ध्रुव पर आपतित होती है वह दर्पण से परावर्तन के पश्चात विपरीत दिशा में सामान कोण(मुख्य अक्ष के साथ) से लौट जाती है।
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