ऊष्मा चालन | Heat Conduction in Hindi
ऊष्मा चालन | Heat Conduction in Hindi :- ठोस पदार्थों में [पारे(Hg) को छोड़कर] कणों के मध्य सीधे संपर्क के माध्यम से ऊष्मा स्थानान्तरण की प्रक्रिया को उष्मीय चालन है। यह पड़ोसी कणों के मध्य गतिज ऊर्जा के विनिमय(आदान-प्रदान) के कारण होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च तापमान वाले क्षेत्र से कम तापमान वाले क्षेत्र में ऊष्मा ऊर्जा का स्थानांतरण होता है। ऊष्मा चालन में, कण स्वयं एक स्थान से दुसरे स्थान तक गति नहीं करते, अपितु उनके कंपन और टकराव से पूरे पदार्थ में ऊष्मा ऊर्जा का प्रसार होता है। वस्तु के एक भाग से दूसरे भाग में चालन द्वारा ऊष्मा का स्थानांतरण तब तक जारी रहता है जब तक कि उनका तापमान बराबर न हो जाए।
उदाहरण के लिए यदि आप लोहे की एक छड़ को पकड़ कर उसके एक सिरे को कुछ समय के लिए आग पर रखें तो इसका हत्था गर्म हो जाता है। ऊष्मा, लोहे की छड़ के अनुदिश चालन द्वारा संचरित होती है। लोहे की छड़ के परमाणु व इलेक्ट्राॅनों का कम्पन्न आयाम गर्म सिरे पर वातावतरण के उच्चताप के कारण अधिकतम मान प्राप्त कर लेता है। ये बढ़े हुए कम्पन्न आयाम, पड़ौसी परमाणुओं के मध्य परमाणु से परमाणु की टक्कर के दौरान छड़ के अनुदिश संचरित होते हैं। इस प्रकार बढ़ा हुआ ताप का क्षेत्र छड़ की लम्बाई के अनुदिश आपके हाथ तक फैलता है।
ऊष्मा चालन की
स्थायी अवस्था(Steady State) व परिवर्ती अवस्था(Variable State)
परिवर्ती अवस्था (Variable State):- जब किसी धातु की छड़ के एक सिरे पर ऊष्मा की आपूर्ति की जाती है, तो छड़ का प्रत्येक अनुप्रस्थ काट उस ऊष्मा का कुछ भाग अवशोषित करता है व शेष ऊष्मा को अगले अनुप्रस्थ काट में भेज देता है।
छड़ के प्रत्येक अनुप्रस्थ काट द्वारा गर्म सिरे से प्राप्त ऊष्मा का उपयोग तीन प्रकार से किया जाता है :-
(i) ऊष्मा का एक भाग अनुप्रस्थ काट द्वारा अवशोषित किया जाता है, जिससे इसका तापमान बढ़ता है।
(ii) ऊष्मा का कुछ भाग निकटवर्ती अनुप्रस्थ काट में स्थानांतरित कर दिया जाता है और
(iii) शेष भाग वायुमंडल में विकिरित हो जाता है।
छड़ की वह अवस्था जिसमें प्रत्येक अनुप्रस्थ काट ऊष्मा अवशोषित करता है तथा प्रत्येक अनुप्रस्थ काट का तापमान स्थिर नहीं होता, परिवर्ती तापीय अवस्था कहलाती है।
स्थायी तापीय अवस्था (Steady State) :- यदि किसी छड़ में किसी स्थिति x पर अनुप्रस्थ काट का तापमान समय के साथ स्थिर रहता है (याद रखें, यह स्थिति x के साथ परिवर्तित होता है), तो छड़ को स्थायी तापीय अवस्था में कहा जाता है।
स्थायी अवस्था में चालक के किसी अनुप्रस्थ काट द्वारा ऊष्मा का अवशोषण या उत्सर्जन नहीं होना चाहिये (क्योंकि प्रत्येक बिन्दु पर तापमान समय के साथ नियत रहता है)। बांया व दायां फलक नियत ताप क्रमशः TH व TL पर रखे जाते हैं एवं अन्य सभी फलकों की दीवारें रूद्धोष्म होनी चाहिए ताकि उनसे ऊष्मा वातावरण में विकिरित ना हो एवं दिये गये समयान्तराल में प्रत्येक अनुप्रस्थ काट से समान ऊष्मा की मात्रा प्रवाहित होती रहे।