उभयनिष्ठ विभव
उभयनिष्ठ विभव :- जब दो संधारित्र जिन्हें भिन्न-भिन्न विद्युत विभव तब आवेशित किया गया है, किसी चालक तार द्वारा संयोजित किए जाते हैं, तब उच्च विभव वाले संधारित्र से निम्न विभव वाले संधारित्र की ओर आवेश का प्रवाह होता है। यह आवेश का प्रवाह तब तक होता है जब तब दोनों संधारित्रों का विद्युत विभव समान नहीं हो जाता। दोनों संधारित्रों का यह समान विद्युत विभव, उभयनिष्ठ विभव (common potential) कहलाता है। इस प्रक्रम में आवेश संरक्षित रहता है अर्थात आवेश की कोई हानि नहीं होती।
माना C1 व C2 दो संधारित्रों की धारिता के मान हैं जिनके विद्युत विभव क्रमशः V1 व V2 हैं :-
संयोजन से पूर्व कुल आवेश :
…..(1)
यदि संयोजन के पश्चात उभयनिष्ठ विभव का मान V हो, तब संयोजन के पश्चात कुल आवेश :
…..(2)
क्योंकि आवेश संरक्षित रहा, अतः समीकरण (1) व (2) से,
…..(3)
अर्थात,
समीकरण (3) उभयनिष्ठ विभव की अभीष्ट समीकरण है।
समीकरण (3) से,
⇒ एक संधारित्र के आवेश में हानि = दूसरे संधारित्र के आवेश में वृद्धि
उपरोक्त कथन विद्युत विभव के लिए मान्य नहीं है अर्थात एक संधारित्र के विभव में हानी दूसरे संधारित्र के विभव में वृद्धि के बराबर नहीं है, क्योंकि दोनों संधारित्रों की धारिता भिन्न-भिन्न है।
नोट :-
समीकरण (3) की व्युत्पत्ति यह मानते हुए की गई है कि दोनों संधारित्र समांतर क्रम में संयोजित हैं, अर्थात दोनों संधारित्रों की धनात्मक प्लेटें एक बिंदु पर व ऋणात्मक प्लेटें एक बिंदु पर संयोजित हैं। किंतु यदि दोनों संधारित्र श्रेणी क्रम में संयोजित हों, अर्थात यदि एक संधारित्र की धनात्मक प्लेट दूसरे संधारित्र की ऋणात्मक प्लेट के साथ संयोजित हो तब एक संधारित्र का आवेश दुसरे संधारित्र के आवेश को निरस्त करने का प्रयास करेगा क्यूंकि इन पर आवेश की प्रकृति विपरीत है।
उपरोक्त चित्र (b) में क्यूंकि दोनों संधारित्र श्रेणी क्रम में संयोजित हैं, अतः दोनों पर आवेश का मान समान (Q) होगा। अतः उभयनिष्ठ विभव :-
…..(4)
अर्थात इस स्थिति में कुल आवेश, दोनों संधारित्रों पर आवेशों के बीजगणितीय योग (algebraic sum) के बराबर होगा।
ध्यान रहे कि समीकरण (4) में कुल धारिता (C1 + C2) ही होगी क्योंकि यह संधारित्रों का श्रेणी क्रम संयोजन है।