अवस्था परिवर्तन
अवस्था परिवर्तन :- पदार्थ सामान्यतः तीन अवस्थाओं में उपस्थित होता है : ठोस, द्रव और गैस। जब किसी पदार्थ को ऊष्मा ऊर्जा प्रदान की जाती है तो वह एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तित हो जाता है और इस प्रक्रिया को अवस्था परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। दो सामान्य अवस्था परिवर्तन हैं : ठोस से द्रव और द्रव से गैस (तथा विलोमतः)।
आइए एक बीकर में बर्फ के कुछ टुकड़े डालकर तापन अथवा शीतलन पर अवस्था परिवर्तन का अध्ययन करें।
इसे निरंतर ताप स्रोत पर धीरे-धीरे गर्म करें और पानी और बर्फ के मिश्रण को लगातार हिलाते रहें। समय के नियमित अंतराल पर तापमान नोट करें व तापमान और समय के मध्य एक आलेख बनाएं। आपको निम्न प्रकार का एक आलेख प्राप्त होगा :
प्रारंभ में आप देखेंगे कि जब तक बीकर में पूरी बर्फ पिघल नहीं जाती तब तक तापमान में कोई परिवर्तन नहीं होता है (O→P)। इस बिंदु पर पदार्थ की ठोस और तरल दोनों अवस्थाएँ एक दूसरे के साथ तापीय साम्य में उपस्थित होती हैं। आपूर्ति की गई ऊष्मा का उपयोग ठोस (बर्फ) से तरल (जल) में परिवर्तन में किया जाता है। जिस तापमान पर यह प्रक्रिया होती है उसे गलनांक कहते हैं।
∴ गलनांक वह तापमान है जिस पर किसी पदार्थ की ठोस और तरल अवस्थाएं एक दूसरे के साथ परस्पर तापीय साम्य में होती हैं।
गलनांक (i) पदार्थ की प्रकृति और (ii) दाब पर निर्भर करता है। 1 वायुमंडलीय दाब पर किसी पदार्थ का गलनांक उसका प्रसामान्य गलनांक (normal melting point) कहलाता है।
यह अध्ययन करने के लिए कि गलनांक दाब पर कैसे निर्भर करता है, आइए एक गतिविधि करें। एक हिम शिला लें और एक तार को इस के ऊपर रखें। तार के दोनों सिरों पर दो ब्लॉक (मान लीजिए 5 kg के प्रत्येक) बाँधिए जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है :-
आप देखेंगे कि तार हिम शिला में से पारित और शिला विभाजित नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तार के ठीक नीचे दाब अधिक होता है, जिससे गलनांक कम हो जाता है और हिम कम तापमान पर पिघलती है। जब तार उस भाग से गुजर जाती है, तो दाब कम हो जाता है और गलनांक पुनः बढ़ जाता है, इसलिए तार के ऊपर का जल फिर से हिमीभूत हो जाता है। पुनः हिमीभूत होने की इस घटना को पुनर्हिमायन (regelation) कहा जाता है।
पुनर्हिमायन वह घटना है जिसमें दाब बढ़ाने पर हिम 0°C से नीचे के तापमान पर जल में पिघल जाती है और दाब कम करने पर पुनः हिम में बदल जाती है।
पुनर्हिमायन के कारण ही हिम पर स्केटिंग संभव है। दाब बढ़ने के कारण स्केट्स के नीचे हिम से जल बनता है और यह स्नेहक के रूप में कार्य करता है।
सम्पूर्ण हिम के जल में परिवर्तित होने के पश्चात (बिंदु P) यदि और ऊष्मा दी जाए, तो हम देखेंगे कि तापमान में वृद्धि प्रारम्भ हो जाती है (P→Q)। तापमान तब तक बढ़ता रहता है जब तक कि यह लगभग 100 °C तक नहीं पहुंच जाता, जब यह पुनः स्थिर हो जाता है (बिंदु Q)। आपूर्ति की गई ऊष्मा का उपयोग अब जल (द्रव अवस्था) से वाष्प (गैसीय अवस्था) परिवर्तन में उपयोग किया जा रहा है। द्रव से वाष्प (या गैस) अवस्था में परिवर्तन को वाष्पीकरण (vaporization) कहा जाता है।
इस बिंदु पर पदार्थ की द्रव और वाष्प दोनों अवस्थाएँ एक दूसरे के साथ तापीय साम्य में उपस्थित होती हैं। इस तापमान को क्वथनांक (Boiling point) कहा जाता है।
∴ क्वथनांक वह तापमान है जिस पर किसी पदार्थ की द्रव और वाष्प अवस्थाएँ एक दूसरे के साथ परस्पर तापीय साम्य में होती हैं।
क्वथनांक (i) पदार्थ की प्रकृति और (ii) दाब पर निर्भर करता है। 1 वायुमंडलीय दाब पर किसी पदार्थ का क्वथनांक उसका प्रसामान्य क्वथनांक (normal boiling point) कहलाता है।
यह अध्ययन करने के लिए कि क्वथनांक दाब पर किस प्रकार निर्भर करता है, आइए एक गतिविधि करें। एक फ्लास्क लें और उसके आधे से अधिक भाग को जल से भरें। इसे एक बर्नर के ऊपर रखें और फ्लास्क के मुख पर लगी कॉर्क के वेधों से एक तापमापी और एक भाप निकास नलिका स्थापित करें जैसा कि नीचे चित्र में दर्शाया गया है :-
जैसे-जैसे जल गर्म होगा, जल में घुली वायु छोटे-छोटे बुलबुलों के रूप में बाहर निकलेगी। जैसे ही वायु के ये बुलबुले (फ्लास्क के पेंदे पर बनने वाले) ऊपर के ठंडे जल की ओर बढ़ते हैं, वे संघनित हो जाते हैं और अदृश्य हो जाते हैं। धीरे-धीरे, जैसे ही सम्पूर्ण जल का तापमान 100 °C तक पहुंचता है, भाप के बुलबुले जल की सतह तक पहुंचते हैं और जल का क्वथन प्रारम्भ हो जाता है। फ्लास्क में बनी भाप फ्लास्क से बाहर आते ही दिखाई देने लगती है। यह जल की छोटी-छोटी बूंदों के रूप में संघनित होकर धुंध के रूप में दिखाई देती है।
अब यदि भाप निकास नलिका को कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाए तो फ्लास्क के अंदर दाब बढ़ जाता है और जल का क्वथन बंद हो जाता है। कुछ समय पश्चात जब जल द्वारा और अधिक ऊष्मा अवशोषित की जाती है, तो जल पुनः उच्च तापमान (दाब में वृद्धि के आधार पर) पर क्वथन प्रारम्भ कर देता है। इस प्रकार दाब बढ़ने पर क्वथनांक बढ़ जाता है।
आइए अब बर्नर को हटा दें और जल को लगभग 80°C तक ठंडा होने दें। अब तापमापी और भाप निकास नलिका हटा कर फ्लास्क के मुख पर वायुरुद्ध कॉर्क लगा दें। फ्लास्क को स्टैंड पर उल्टा रखें और उस पर हिमशीतित जल डालें।
हिमशीतित जल डालने से फ्लास्क में जलवाष्प संघनित हो जाते हैं जिससे फ्लास्क के अंदर जल की सतह पर दाब कम हो जाता है जिससे कम तापमान पर जल में पुनः क्वथन प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार दाब में कमि के साथ क्वथनांक कम हो जाता है।
यही कारण है कि पहाड़ों पर खाना पकाना कठिन होता है। अधिक ऊंचाई पर वायुमंडलीय दाब कम होता है, जिसके कारण जल का क्वथनांक समुद्र तल की तुलना में कम हो जाता है। दूसरी ओर, प्रेशर कुकर के अंदर दाब बढ़ाकर क्वथनांक बढ़ाया जाता है। इसलिए प्रेशर कुकर में खाना जल्दी बनता है।
हालाँकि, सभी पदार्थ तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव और गैस से नहीं गुजरते। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जो सीधे ठोस से वाष्प अवस्था में और विलोमतः परिवर्तित हो जाते हैं। द्रव अवस्था से गुजरे बिना ठोस से वाष्प में सीधे परिवर्तन को ऊर्ध्वपातन (sublimation) कहा जाता है, और पदार्थ को ऊर्ध्वपातन पदार्थ (sublime) कहा जाता है। उर्ध्वपातन के दौरान किसी पदार्थ की ठोस और वाष्प दोनों अवस्थाएँ तापीय साम्य में होती हैं। ऊर्ध्वपातन पदार्थों के उदाहरण: शुष्क हिम (ठोस CO2), नेफ़थलीन, आयोडीन, कपूर आदि।