प्रकृति के 4 मूल बल (4 fundamental forces in nature)
प्रकृति के 4 मूल बल :- प्रकृति में देखे गए सभी बल जैसे कि मांसपेशीय बल, तनाव, प्रतिक्रिया, घर्षण, प्रत्यास्थता, भार, विद्युत-चुम्बकीय बल,नाभिकीय बल आदि, केवल 4 मूल बलों के रूप में समझाए जा सकते हैं: –
(1) गुरुत्वाकर्षण बल
(2) विद्युत-चुम्बकीय बल
(3) नाभिकीय बल
(4) दुर्बल बल
(1) गुरुत्वाकर्षण बल
m1 व m2 द्रव्यमान के दो कणों के मध्य, उनके द्रव्यमानो के कारण लगने वाले अन्योन्य बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।
यहां
G : सार्वभौमिक/ सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण नियतांक = 6.67 × 10-11 Nm2/Kg2
m1,m2 : पिंडों के द्रव्यमान
r : पिंडों के केंद्रों के बीच की दूरी
गुरुत्वाकर्षण बल के गुण: –
(i) यह दुर्बल बल है।
(ii) यह हमेशा आकर्षण की प्रकृति का होता है।
(iii) यह एक लंबी दूरी का बल है क्योंकि यह ब्रह्मांड में किसी भी दूरी पर स्थित किन्ही भी दो कणों के बीच कार्य करता है।
(iv) यह कणों के बीच उपस्थित माध्यम की प्रकृति पर निर्भर नहीं करता।
अब हम मानते हैं कि एक सेब मुक्त रूप से गिर रहा है जैसा कि चित्र में दिखाया गया है: –
जब यह पृथ्वी की सतह से h ऊँचाई पर होता है तब पृथ्वी और सेब के बीच गुरुत्वाकर्षण का बल निम्न सूत्र द्वारा दिया जाता है:-
इस बल की दिशा पृथ्वी के केंद्र की ओर होती है ।
Me : पृथ्वी का द्रव्यमान
Re : पृथ्वी का त्रिज्या
लेकिन यहाँ Re>>>>h, इसलिये (Re + h) ≅ Re
अतः,
≅ = …………………(1)
इस समीकरण की तुलना निम्न समीकरण से करने पर
F = ma …………………(2)
हम पाते हैं
यह राशि गुरुत्वाकर्षण के कारण त्वरण (गुरुत्वीय त्वरण) कहलाती है और इसे एक प्रतीक दिया जाता है ‘g’, इसलिए गुरुत्वीय त्वरण: –
निम्न मानो का प्रयोग करने पर
G = 6.67 × 10-11 Nm2/Kg2
Me = 5.972 × 1024 kg
Re = 6.4 × 106 m
हमें प्राप्त होता है
g = GMe /(Re)2 = 9.8 m/s2 = π2m/s2 = 32 ft/s2
g ≅ 10 m/s2
इसे पृथ्वी की सतह के निकट गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं।
(2) विद्युत-चुम्बकीय बल
कणों पर विद्युत आवेश के कारण एक कण द्वारा दूसरे पर लगाया गया बल विद्युत-चुम्बकीय बल कहलाता है।
विद्युत चुम्बकीय बल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं: –
(i) ये आकर्षक या प्रतिकर्षण दोनो प्रकृति के हो सकते हैं।
(ii) ये लंबी दूरी के बल हैं।
(iii) इन बलों का मान आवेशित कणों के बीच माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है।
(iv) सभी स्थूल बल(गुरुत्वाकर्षण को छोड़कर) जो धक्के या खिंचाव या संपर्क के कारण उत्पन्न होते हैं, विद्युत-चुम्बकीय बल कहलाते हैं। अर्थात्, रस्सी में तनाव, घर्षण बल, अभिलम्ब प्रतिक्रिया बल, मांसपेशिय बल और स्प्रिंग बल, विद्युत-चुम्बकीय बल हैं। सूक्ष्म स्तर पर ये परमाणु / अणुओं के बीच विद्युत-चुम्बकीय आकर्षण और प्रतिकर्षण के कारण उत्पन्न होते हैं।
(3) नाभिकीय बल
यह प्रकृति मे सबसे प्रबल बल है। यह नाभिकीय कणो (न्यूट्रॉन और प्रोटॉन) को आपस में प्रोटॉन के मध्य उपस्थित अत्यधिक प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध बांधे रखता हैं। रेडियोधर्मिता, विखंडन और संलयन आदि नाभिकीय बलों के असंतुलित होने के कारण होते हैं। यह बल नाभिक के भीतर कार्य करता है। अतः नाभिकीय बल की पारस बहुत कम होती है(केवल नाभिक की सीमा तक ही)।
(4) दुर्बल बल
यह किन्ही भी दो मूल कणों (प्रोटॉन या न्यूट्रॉन) के बीच कार्य करता है। इन बलों के कारण एक न्यूट्रॉन, एक इलेक्ट्रॉन और एक कण (एंटीन्यूट्रिनो), उत्सर्जित करके प्रोटॉन में बदल सकता है। दुर्बल बल की परास बहुत कम होती है(यह बल केवल नाभिक के सीमा में ही कार्य करता है)।
मूल बलों के परिमाण की तुलना
मान लीजिये कि दो प्रोटॉन को एक दूसरे से 1 फर्मी (10-15 मीटर) की दूरी पर रखे जाते हैं, तब उनके मध्य नाभिकीय बल, विद्युत चुम्बकीय बल, दुर्बल बल और गुरुत्वाकर्षण बल का निम्न अनुपात पाया जाता है …
FN : FEM : FW : FG :: 1 : 10-2 :10-7 :10-38