प्रेरक में संचित ऊर्जा
प्रेरक में संचित ऊर्जा :- जब एक प्रेरक को प्रत्यावर्ती स्रोत के साथ संयोजित किया जाता है, तो स्वप्रेरण के कारण प्रेरक धारा वृद्धि का विरोध करता है। माना किसी समय परिपथ में धारा का मान i है, तब प्रेरक में प्रेरित विद्युत वाहक बल :
अल्प समय dt में धारा वृद्धि के लिए प्रत्यावर्ती स्रोत द्वारा किया गया अल्प कार्य,
प्रेरक में धारा का मान 0 से I तक बढ़ाने में प्रत्यावर्ती स्रोत द्वारा किया गया कुल कार्य,
यही कार्य प्रेरक में चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा (UB) के रूप में संचित हो जाता है, अतः प्रेरक में संचित ऊर्जा,
…..(1)
प्रेरक के प्रेरकत्व की जड़त्व से तुलना :-
विद्युत परिपथ में एक प्रेरक का व्यवहार उसी प्रकार है जैसे यांत्रिकी में स्थानान्तरण गति में द्रव्यमान का व्यवहार होता है। इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है :-
विद्युत परिपथ में प्रेरक :
एक प्रेरक अपने प्रेरकत्व के गुण के कारण इसमें प्रवाहित धारा में परिवर्तन का विरोध करता है। प्रेरक में प्रेरित विद्युत वाहक बल :
…..(2)
स्थानान्तरण गति में द्रव्यमान :
यांत्रिकी में किसी वस्तु का द्रव्यमान अपने जड़त्व के गुण के कारण वेग में परिवर्तन का विरोध करता है। न्यूटन के द्वितीय नियम से :
…..(3)
प्रेरक और द्रव्यमान के मध्य समानताएँ :-
(1). प्रेरकत्व (𝐿) द्रव्यमान (𝑚) के अनुरूप है क्यूंकि दोनों परिवर्तन का करते हैं (प्रेरक धारा वृद्धि का विरोध करता है और किसी वस्तु का द्रव्यमान उसके वेग में परिवर्तन का)।
(2). प्रेरक के सिरों पर विद्युत वाहक बल (ε) किसी वस्तु के द्रव्यमान पर आरोपित बाह्य बल (𝐹) के समतुल्य है।
(3). प्रेरक में प्रवाहित धारा (I) किसी वस्तु के वेग (v) के समतुल्य है।
(4). प्रेरक में धारा परिवर्तन की दर () किसी वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर अर्थात् त्वरण () के समतुल्य है।
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